बुधवार, जनवरी 26

सप्तपदी वैदिक विवाह...सात वचनों का अर्थ...सर्जना शर्मा

चर्चा मंच पर ज्ञानवाणी में विवाह संबंधी एक पोस्ट पढ़ी, सुशील बाकलीवाल जी ने उसमें वर वधु दोनों के वचनों के बारे में जानकारी चाही है । मैं अपने को विशेषज्ञ तो नहीं मानती लेकिन आजकल विवाह से संबंधित एक साप्ताहिक कार्यक्रम बनाती हूं तो हर तरह के विवाह पर रिसर्च कर रही हूं, बाकलीवाल जी आशा है आपको मेरी इस पोस्ट  में  कुछ सवालों का उत्तर मिलेगा ।
जिस विवाह में सप्तपदी होती है वो वैदिक विवाह कहलाता है । सप्तपदी वैदिक विवाह का अभिन्न अंग है । इसके बिना विवाह पूरा नहीं माना जाता सप्तपदी के बाद ही कन्या को वर के वाम अंग में बैठाया जाता है ---"यावत्कन्या न वामांगी तावत्कन्या कुमारिका " जब तक कन्या वर के वामांग की अधिकारिणी नहीं होती उसे कुमारी ही कहा जाएगा ।माता पिता कन्यादान भी कर दें , भाई लाजा होम भी करवा दें , पाणिग्रहण संस्कार भी हो जाए लेकिन जब तक सप्तपदी नहीं होती तब तक वर और कन्या  पति पत्नी नहीं बनते । और वैदिक विवाह में अंतिम अधिकार कन्या को ही दिया गया है । माता पिता भले ही कन्यादान कर दें , भाई लाजा होम करवा दें लेकिन जब तक सप्तपदी के सातों वचन पूरे नहीं हो जाते और कन्या वर के वाम अंग में नहीं बैठ जाती तब तक विवाह पूरा माना ही नहीं जाएगा ।  और आधुनिक विचार धारा वाले चाहे इसे ढ़कोसला कहें या पुरातन पंथी लेकिन उन्हें भी  ये जान कर हैरानी होगी कि इसमें दोनों बराबर हैं और सातवें पद के बाद दोनों सखा बन जाते हैं । दुनिया की किसी विवाह पद्धति में ऐसा बराबर का रिश्ता नहीं है ।
जैसे आप सब विवाह जैसे अनुष्ठान को इवेंट मैनेजमैंट बनाए जाने से चिंतित हैं वैसे ही विवाह करवाने वाले कुछ ज्ञानवान पंड़ित भी परेशान हैं उन्होने वैदिक  विवाह का महत्व समझाने के लिए पुस्तकें लिखीं जिसका सरल हिंदी में भी अनुवाद किया गया । वैदिक विवाह पद्धति हज़ारों साल पुरानी है, ऋग्वेद और अथर्ववेद इसके आधार हैं ।चारों वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है । ऋग्वेद के दसवें मंडल का 85 वां सूक्त और अथर्ववेद के 14 वें कांड का पहला सूक्त  विवाह सूक्त हैं . ऋषि मुनियों ने इन्हीं सूक्तों के आधार पर वैदिक विवाह पद्धति तैयार की । वैदिक विवाह को सर्वश्रेष्ठ माना गया है । क्योंकि ये विवाह माता पिता की सहमति से , नाते रिश्तेदारों , इष्ट मित्रों और गुरूजनों के आशीर्वाद से होता है । और देवी देवता इसके साक्षी रहते हैं । वैदिक विवाह के कईं भाग हैं लेकिन बाकलीवाल जी ने सप्तपदी के बारे में ही जानकारी चाही है इसलिए हम सप्तपदी तक ही केंद्रित रहेगें । सप्तपदी को सनातन धर्म में सात जन्मों  का बंधन माना गया है ।

---- पहले पद में वर कन्या से कहता है ---ऊं इष एकपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 1।।
      वर  कहता   है --- हे देवि  ! तुम संपत्ति तथा ऐश्वर्य और दैनिक खाद्य और पेय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए पहला पग बढ़ाओ ,  सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो  । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।
----   ऊं ऊर्जे द्विपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 2 ।।
----     हे देवी ! तुम त्रिविध बल तथा पराक्रम की प्राप्ति के लिए दूसरा पग बढ़ाओ ।  सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें...                
----ऊं रायस्पोषाय त्रिपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 3 ।।
 -----------हे देवि ! धन संपत्ति की वृद्धि के लिए तुम तीसरा पग बढ़ाओ ,सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली  रहो  । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।             
---- ऊं मयोभवाय चतुष्पदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 4।।
....हे देवि ! तुम आरोग्य शरीर और  सुखलाभवर्धक धन संपत्ति के भोग की शक्ति के लिए चौथा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।             
--- ऊं पशुभ्यो: पंचपदी  भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 5 ।।
---   हे देवि !तुम  घर में पाले जाने वाले पांच पशुओं ,( गाय , भैंस , बकरी , हाथी और घोड़ा ) के पालन और रक्षा के लिए पांचवा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें   ।।              ।
---- ऊं ऋतुभ्य षट्पदी भव सा मामुनव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 6 ।।
----  हे देवि !  तुम 6 ऋतुओं के अनुसार यज्ञ आदि और विभिन्न पर्व मनाने के लिए और ऋतुओं के अनुकूल खान पान के लिए छठा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें   ।।              ।
--- ऊं सखे सप्तपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 7 ।। ---
-----  हे देवि !  जीवन का सच्चा साथी बनने के लिए तुम  सातवां पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।              । 
        
रामेश्वर दास गुप्त धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा वैदिक विवाह पद्धति में तो सरल भाषा में सातों पदों को कुछ ऐसे लिखा गया है---

---  अन्नादिक धन पाने के हित , चरण उठा तू प्रथम प्रिये ।।
 ---  और दूसरा बल पाने को , जिससे जीवन सुखी जियें  ।।
 ---धन पोषण को पाने के हित , चरण तीसरा आगे धर  ।।
 --- चौथा चरण बढ़ा तू देवि , सुख से अपने घर को भर ।।
 --- पंचम चरण उठाने से,  तू पशुओं की भी स्वामिन बन ।।
 ---- छठा चरण ऋतुओं से प्रेरक, बन कर हर्षित कर दे मन ।।
 ---- और सातवां चरण मित्रता के हित आज उठाओ तुम ।
 मेरा जीवन व्रत अपनाओ , घर को स्वर्ग बनाओ तुम ।।
 सप्तपदी पूरी होने के बाद कन्या को वर के वाम अंग में आने का निमंत्रण दिया जाता है ,लेकिन वामांगी बनने से पहले कन्या भी वर से कुछ वचन लेती है ----
 ---  तीर्थ , व्रत, उद्यापन . यज्ञ , दान यदि मेरे साथ करोगो तो मैं तुम्हारे वाम अंग आऊंगी ।
----   यदि देवों का हव्य, पितृजनों को कव्य मुझे संग लेकर करोगे तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आऊंगी ।
--- परिजन , पशुधन का पालन रक्षण भार यदि है आपको स्वीकार तो मैं वाम अंग में आने
 को तैयार ।
---- आय -व्यय , धन- धान्य में मुझ से यदि करोगो विचार , तो मैं वाम अंग में आने  को तैयार ।
--- मंदिर , बाग -तड़ाग या कूप का कर निर्माण  पूजोगे, यदि  तो मुझे वामांगी निज जान ।
--- देश- विदेश में तुम क्रय विक्रय की जानकारी मुझे भी देते रहोगे तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आऊंगी ।
---- सुनो सातवीं शर्त यह , पर नारी का संग ,नहीं करोगे तो आऊंगी, स्वामिन्  वाम अंग ।
कन्या के इन सात वचनों के उत्तर में वर कहता है-
---तुम अपने चित्त को मेरे चित्त के अनूकूल कर लो , मेरे कहे अनुसार चलना और मेरे धन को भोगना पतिव्रता बन कर रहना तो मैं भी तुम्हारे सारे वचन निभाऊंगा तुम गृह स्वामिनी बन कर  सारे सुख भोगना ।
वर एक बार फिर कन्या से पांच वचन लेता है ----
मेरी आज्ञा के बिना , सोमपान , उद्यान ।
पितृघर या कहीं और , मुझको अपना मान ।।
जाओगी यदि तुम नहीं , बन कर मम अनूकूल ।
पतिव्रता बन न करो , मुझ से कुछ   प्रतिकूल  ।।
वामांगी तब ही तुम्हे मानूंगा कल्याणी
इसमें ही हित जानना नहीं तो निश्चित हानि ।।

 ये वचन किसी को अपना दास बनाने के लिए बल्कि एक संतुलित , सुचारू गृहस्थी चलाने के लिए हैं और सातवें पद के बाद दोनों सखा भी तो बन जाते हैं ।
इसके बाद धुव्र तारे के दर्शन कराए जाते हैं धुव्र अपनी अटल भक्ति और दृढ़ निश्यच के लिए जाना जाता है --- वर वधु को धुव्र तारा दिखाता है और कहता है ----- तुम धुव्र तारे को देखो , वधु ध्रुव तारे को देख कर कहती है --- जैसे ध्रुव तारा अपनी परिधी में स्थिर रहता है वैसे ही मैं भी अपने पति के घर में .कुल में स्थिर रहूं ।
उसके बाद --- वर वधु को अरूंधती तारा दिखा कर कहता है --- हे वधु अरूंधती तारे को देखो ।
वधु अंरूधति तारे को देख कर कहती है ---- हे अरूंधती जिस तरह तू सदा वशिष्ठ ( नत्रक्ष )  की परिचर्या में संलग्न रहती है इसी प्रकार मैं भी  अपने पति की सेवा में संलग्न  रहूं,संतानवती होकर सौ वर्ष तक अपने पति के साथ सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करूं ।
और फिर आती है सबसे रोचक रस्म की बारी--
वर अपने दाएं हाथ से  वधु के हृदय को  स्पर्श करते हुए कहता हैं  ---
---- मैं तुम्हारे, हृदय को अपने कर्मों के अनुकूल करता हूं  मेरे चित्त के अनुकूल तुम्हारा चित्त हो । मेरे कथन को एकाग्रचित् हो कर सुनना  प्रजा का पालन करने वाले  ब्रह्मा जी ने  तुम्हें मेरे  लिए  नियुक्त किया है।
आज पश्चिमी देश जब लिंग भेद की बात कर रहे हैं तो हमारे यहां हज़ारों साल पहले  नारी और पुरूष को कितना बराबरी का अधिकार था । विवाह का एक एक वचन दोनों के बराबर के दर्जे की बात करता है . बल्कि वर वधु को अपना सर्वस्व दे रहा है । गृहस्थी को हमारे वेदों में सर्वश्रेष्ठ आश्रम  माना गया है । विवाह केवल दो शरीरों का नहीं दो आत्माओं , दो परिवारों का मिलन है । सनातन संस्कृति के 16 संस्कारों में से एक अति महत्वपूर्ण संस्कार है । विवाह को दो आत्माओं का आध्यात्मिक मिलन माना गया है ऋग्वेद में वर वधु विवाह के समय भगवान से एक प्रार्थना करते हैं  जिसका हिंदी अनुवाद कुछ इस प्रकार है ------
 --- " विश्व के सृजनहार ( ब्रह्मा जी ) , पालनहार ( विष्णु जी ) संहारकर्ता ( आदि देव महादेव ) अपनी शक्ति से और विवाह मंडप में विराजमान देवता और अन्य विद्वान और महान गण अपने शुभ आशीष से हमारी ( वर -वधु ) आत्माओं और हृदयों का एकीकरण इस प्रकार कर दें जैसे दो नदियों और दो पात्रों का जल परस्पर मिल कर एक हो जाता है । अर्थात जिस प्रकार गंगा और यमुना की पवित्र धाराओं का संगम होने पर विश्व की कोई शक्ति उन्हें  अलग नहीं कर सकती , इसी प्रकार हमारी आत्माएं भी परस्पर मिल कर शरीर से पृथक होते हुए भी आत्मा और हृदय से एक हो जायें । " 

शनिवार, जनवरी 22

रेलवे का दोहरा मानदंड

  सर्जना शर्मा
आमतौर पर आपने देखा  होगा कि हम अपने अमीर दोस्तों और रिश्तेदारों की खातिर तव्वजो को लेकर बहुत सचेत होते हैं। अपने   मेहमान की आर्थिक  हैसियत के अनुसार उसके लिए ख़ातिरदारी के इंतज़ाम  करते हैं। भारतीय रेलवे भी ऐसा ही करता है ये मुझे पहली बार पता चला ।
जनवरी के दूसरे सप्ताह में एक शादी में लुधियाना गयी तो जाते समय दिल्ली से स्वर्ण शताब्दी पकड़ी ये दिल्ली से अमृतसर तक का रास्ता तय करती है। स्वर्ण शताब्दी में लगभग सात साल बाद सफर कर रही थी  इस ट्रेन का तो कायाकल्प ही हो गया है। कालका और देहरादून शताब्दी में तो अकसर आना जाना होता रहता है। लेकिन स्वर्ण शताब्दी में कहीं ज्यादा सुविधाएं , कहीं ज्यादा सफाई है।
  लालू यादव जब रेल मंत्री थे तो उन्होनें रेलवे का फायदा दिखाने के लिए शताब्दी ट्रेनों और अन्य ट्रेनों के एसी कोच  की बहुत सी सुविधाएं छीन ली थीं और सीटें ऐसी कि जैसे आम कोच की । खैर बात मुद्दे की, स्वर्ण शताब्दी में क्योंकि पंजाब के ज्यादातर एन आरआई या विदेशों में बसे भारतीय सफर करते हैं इसलिए इसके रखरखाव और सफाई  पर कुछ ज्यादा ही ध्यान दिया गया है। ट्रेन का फर्श बहुत बढ़िया बना रखा है । बाथरूम ऐसे कि जैसे किसी अच्छे होटल के हों । लिक्विड सोप डिस्पेंसर , टिस्शू पेपर     डिस्पेंसर जो कि कालका , देहरादून और भोपाल शताब्दी में देखने को भी  नहीं मिलता । कईं बार तो शीशी में लिक्विड सोप होती ही नहीं और टिस्शू होने का तो सवाल ही नहीं।
  बाथरूम एकदम साफ  चकाचक  और वर्दी पहने सफाई कर्मचारी मुस्तैद खड़े रहते हैं। क्योंकि बाथरूम का फर्श गीला है या सीट गीली है या पूरी सफाई नहीं है तो इस ट्रेन में सफर करने वाले अप्रवासी भारतीय अंदर जाते ही नहीं। और केवल एक बार कहने पर ही सफाई कर्मचारी झट से आकर सफाई कर देते हैं। जबकि  अन्य़. शताब्दी ट्रेन  में ऐसा नहीं होता। कई बार तो इतनी गंदगी होती है कि इंसान बाथरूम की स्थिति देख कर ही लौट आता है। किराया तो भारतीय रेलवे सभी शताब्दियों में ही बराबर लेता है फिर स्वर्ण शताब्दी जैसी सुविधाएं बाकी शताब्दियों में क्यों नहीं ? जब ये सुविधाएं अप्रवासी भारतीयों को दी जा सकती हैं तो  भारतीयों  को क्यों नहीं ?              
  इस ट्रेन  में खाना परोसने वाले बेयरे बहुत साफ सुथरे और चुस्त दुरूस्त थे जबकि बाकी शताब्दियों में सब बेयरे इतने साफ सुथरे नहीं होते। एक बार भोपाल शताब्दी से ग्वालियर गई तो खाना परोसने वालों को देख कर अजीब सा अनुभव हुआ । इसमें सफेद सलवार और काली अचकन ड्रैस है। ज्यादातर की सफेद सलवार मैली कुचैली और मुड़ी तुड़ी थी। कईयों ने शेव ही नहीं बना रखी थी ,बिखरे बिखरे बाल,  देख कर लग रहा था कि सो कर उठ कर सीधे चले आएं हैं , मुंह तक नहीं धोया। उन्हें देख कर उनके हाथ का कुछ खाने को मन ही नहीं किया । तो क्या भारतीय रेलवे इन शताब्दियों  की तरफ ध्यान ही नहीं देता है। अगर स्वर्ण शताब्दी में  इतनी सफाई इतनी सुविधाएं हो सकती हैं तो बाकी शताब्दियों में क्यों नहीं ?
   अब बाकी ट्रेनों के एसी कोच का हाल भी जान लिजिए लुधियाना से वापसी में मैनें शाने--ए पंजाब ट्रेन ली। ये ट्रेन भी अमृतसर से नयी दिल्ली तक चलती है। इसके एसी कोच का हाल बदहाल है सीटें मैली कुचौली । ना जाने कब से सफाई  नहीं हुई है।  ज्यादातर सीटें  टूटी पड़ी हैं। बाथरूम आम कोच के डिब्बे से बदतर, ना सफाई ना हाथ धोने को साबुन। रेलवे को भी पता है वो सुविधाएं दें या ना दें उनकी कोच तो फुल जायेंगी ही। फुल ही नहीं वेट लिस्ट भी  लंबी चौड़ी रहेगी। इसलिए बेचारे इंडियन की मजबूरी है और नॉन रेज़िडेंट इंडियन क्योंकि विदेश से आया है उसे कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। इंडियन को आदत पड़ी रहती है सब कुछ झेलने की।
 रेलवे के ये दोहरे मापदंड क्यों?  इसका जवाब तो भारतीय रेलवे के अफसरों के अलावा कोई नहीं दे सकता। आप में से किसी के पास इसका जवाब हो तो कृप्या ज़रूर बताएं ?
        

बुधवार, जनवरी 12

आ गई लोहड़ी वे...सर्जना शर्मा

लोहड़ी की आप सबको शुभकामनाएं । खुशियों का ये त्यौहार ऐसा त्यौहार है जिसे सब मिल कर मनाते हैं, अपनी खुशियां पड़ोसियों दोस्तों और नाते रिश्तेदारों के साथ बांटते हैं । किसी के घर में बच्चा हुआ हो या किसी के बेटे की नयी नयी शादी हुई हो तो उस घर में तो खुशियां होगीं ही होगीं, पूरा आसपड़ोस दोस्त नाते रिश्तेदार भी खुशियां मनाएंगें । हम ऐसे स्थान  में रहते थे जहां पंजाबी हरियाणवी  परिवार बहुत रहते थे ।  सब लोग मिल कर सबके त्यौहार एक साथ मनाते । हमारे पड़ोस में 50 -60 से ज्यादा बच्चे थे और सब लगभग हम उम्र ही  थे । तीन चार साल का अंतर ही ज्यादा से ज्यादा था और वहां एक ही स्कूल था सब बच्चे उसी स्कूल में पढ़ते । त्यौहारों पर जो रौनक और हो हल्ला हमारे यहां होता ऐसा कहीं शायद ही होता होगा ।
                                                                             
लोहड़ी का त्यौहार भर सर्दी में आता है लेकिन हमें कहां सर्दी की परवाह । हम लोग मिल कर लोहड़ी मांगने जाते । हमारा रिंग लीडर होता था रोशन । रोशन अब डॉक्टर है । हम एक चादर  ले लेते । चार बच्चे उसके चार कोने पकड़ते और साथ में एक टोकरी भी । और फिर समवेत स्वर में लोहड़ी गाते हुए निकलते । ज़ोर ज़ोर से गाते --- "दे माई लोहड़ी तेरा पुत्त चढ़ेगा घोड़ी " ,दे  माई पाथी  ( गोबर के उपले ) तेरा पुत्त चढ़ेगा हाथी "। लोहड़ी है भई लोहड़ी है । अगर किसी का दरवाज़ा बंद होता तो उसके घर के सामने गाते ---- खोल माई कुंडा जीवे तेरा मुंडा -- मां दरवाजे की सांकल खोल दे तेरा मुंडा यानि तेरा बेटा जीए ।  हमारा कोई भाई तो नहीं है लेकिन हमारे घर के समाने गाते ---- खोल माई ताक्की ( खिड़की) जीवे  तेरी काकी ( पंजाब में छोटी लाडली बेटी को काकी कहा जाता है ) । मेरी छोटी बहन का नाम  घर में काकी है और पूरा मौहल्ला उसे इसी नाम से बुलाता था । ताक्की केवल हमारे घर की खुलवाई जाती थी । और वो भी दस  मिनट तक ।
                
रोशन बहुत ही चपल चंचल था नचवा लो, गवा लो , नकले उतरवा लो । रोशन ने अच्छी लोहड़ी देने वालों के लिए बना रखा था --- कंघा भई कंघा ए घर चंगा । यानि हमें अच्छी लोह़ड़ी दी ये घर बहुत अच्छा है. और  हम लोग समवेत स्वर में उस घर के सामने ये गाते । चादर  में हम उपले और लकड़ियां डलवाते थे और टोकरी में रेवड़ी,  मूंगफली , गज्जक और मक्की के दाने । जिस घर में नवजात शिशु और नयी दुल्हन की पहली लोहड़ी होती उसके घर से तो बहुत कुछ  लेते ,रूपए पैसे भी । छोटी सी जगह थी सब एक दूसरे को जानते थे, सबमें अच्छे संबंध थे परिवार जैसे ही ।
 सब को पता होता था कि वानर  सेना   आने वाली है इसलिए सब लोहड़ी देने का अच्छा इंतज़ाम करके रखते थे । और कहीं किसी ने हमारी उम्मीद से कम दिया तो फिर उसकी खैर नहीं । उसके घर के समाने कम से कम 15 मिनट गाते-- हुक्का भी हुक्का ए घर भुक्का । ऐसी अपनी दुर्गत कोई नहीं करवाना चाहता था इसलिए गनीमत इसी में होती थी कि बच्चों की फौज को खुश रखा जाए । लेकिन शर्त ये भी  होती थी कि लोहड़ी पूरी गाकर सुनायी जाएगी ।
                            
रोशन के नेतृत्व में सब ज़ोर ज़ोर से गाते -- सुंदर -मुंदरिए -- होए -- तेरा कौन बिचारा होए -- दुल्ला भट्टी वाला । पूरी लोहड़ी गाकर फिर उसके परिवार को शुभ कामनाएं देते बधाई देते और आगे बढ़ जाते ।
                                   
लोहड़ी बच्चों के साथ बड़ों के लिए भी  प्रेम मोहब्बत का, रूठों को मनाने का समय होता । अगर कभी  किसी बात को लेकर पड़ोसिनों में  मनमुटाव हो भी गया तो त्यौहारों पर खत्म हो जाता । जिसके घर में बेटे के जन्म या शादी की लोहड़ी होती उस घऱ की महिलाएं  सबको साथ लेकर लोहड़ी बांटने जातीं । और लोहड़ी बांटने जाने का न्यौता एकदिन पहले ही दे दिया जाता । सब अपने सुंदर सुंदर कपड़े और गहने पहनकर लोहड़ी बांटने जाते। हां उस समय ब्यूटी पार्लर में जाकर तैयार होने का चलन नहीं था, इसलिए सबकी सुंदरता नेचुरल होती थी । आज भी  मेरे ज़ेहन में विशुद्ध सुंदर चेहरे सामने आ जाते हैं । लोहड़ी बांटना मतलब सबके घरों में रेवड़ी , मूंगफली , गज्जक , मक्की के भुने हुए दाने बांटे जाते । बड़ी बड़ी टोकरियों में ये सामान रखा जाता और बड़े बड़े कटोरों से सबके घरों में बांटे जाते । और साथ ही न्यौता दिया जाता कि लोहड़ी पर बहू  के मायके से क्या आया है वो भी  देख  जाओ । पहली लोहड़ी पर बहू के मायके से कपड़े, गहने, मिठाई आती सर्दियों के कपड़े शॉल स्वेटर आते । नवजात बच्चा होता तो उसके कपड़े भी आते । यानि सबको पता  रहता किस की बहू के मायके क्या आया है । कोई अपनी बेटी की ससुराल में लोहड़ी भेजता तो वो भी सबको दिखाया जाता । अब ना वो पड़ोस रहा ,ना किसी को दिखाने का रिवाज़ । मुझे याद है कि ऐसे अवसरों पर बच्चों को कह दिया जाता कि जाओ सद्दा  ( बुलावा ) दे आओ । हम लोग आनन फानन में सद्दा दे आते । बहु के घर से आया सामान या फिर बेटी की ससुराल भेजे जाने वाला सामान मंजी (खाट ) पर सुंदर चादर बिछाकर सजा दिया जाता और सब बड़े चाव से देखने आते । और फिर उस पर महिला मंडल  बैठक  भी चलती । फिर एक नतीजे पर पहुंचा जाता लोहड़ी कैसी आयी सामान्य या बहुत अच्छी । लेकिन अंत में एक टिप्पणी  ये भी  होती चलो जी जो आ गया अच्छा ही है बस प्यार बना रहे । हम तो छोटे थे लेकिन महिलाओं की बातें रस लेकर सुनते थे ।
                                           
लोहड़ी बांटने  और मांगने में अंतर है, बांटती थीं बड़ी महिलाएं और मांगने जाते थे  बच्चे, उन दिनों की यादें आज भी  मन में ताजा है  मेरी  मां ,पड़ोस की चाची ,ताई और मौसी सज धज कर लोहड़ी बांटने जाती थीं । और फिर रात में जलाई जाती लोहड़ी । लोहड़ी की पूजा तिल और मक्की के दानों से की जाती । तिल तड़के दिन सरके कहा जाता । लोहड़ी का अलाव जलाया जाता । मांग मांग कर ही हम इतनी लकड़ी इतनी पाथियां जुटा लेते थे कि पूरी रात भी जलाएं तो कम नहीं पड़ता था । लोहड़ी के आसपास ही खाना पीना होता, सब लोग अपने घरों से लेकर आते और जो हम लोहड़ी मांग कर लाते वो भी कम नहीं होता था । देर रात तक गाना बजाना चलता । ढ़ोलक पर गीत गाए जाते गिद्धा किया जाता । बच्चे या बहू  को नेग भी दिया जाता । यानि सबकी खुशियां सब मिल कर बांटते, सर्दी की रात में घर से बाहर निकल कर एक साथ बैठने का लोहड़ी एक अच्छा मौका रहती ।
                                 
अब जबसे दिल्ली में हूं वैसी लोहड़ी कभी मनायी ही नहीं ।यहां होती भी है तो बस  बोनफायर जला लिया जाता है, डीजे चलाकर हाथ पांव मार लिए जाते हैं । अखबारों में होटलों और रेस्तरां के बड़े बड़े विज्ञापन  आते हैं-- इंज्वाय  लोहड़ी विद बोनफायर , डिनर एंड डीजे । लोहड़ी अब प्रेम और खुशियां बांटने का त्यौहार नहीं बोनफायर , डिनर एंड डीजे एंज्वॉय करने का त्यौहार बन गया है ।  सोसायटी फ्लैट्स और मॉल कल्चर के युग में शायद यही लोहड़ी है और ऐसी ही रहेगी . अब वो दिन नहीं लौटेंगें --- दे माई लोहड़ी तेरा पुत्त चढ़ेगा घोड़ी । खोल माई कुंडा जीवे तेरा मुंडा  ।

रविवार, जनवरी 9

ठंड में रैन बसेरे की याद

सर्जना शर्मा

ब्लॉगर साथियों,
 कड़ाके की ठंड़ पड़ रही है तापमन नीचे , सर्द हवाएं ,घना कोहरा, सर्दी है कि बला । जब आप ऐसी कड़ाके की ठंड़ को स्वयं अनुभव करते हैं तो आपका मन उन बेघरों  की मदद करने को करता होगा जो ठंड में खुले आसमान के नीचे पड़े हैं । सुप्रीम कोर्ट में रैनबेसरों -- नाईट शेल्टरों पर एक एनजीओ ने जनहित याचिका दायर कर रखी है । इसी से जुड़ी एक मज़ेदार सच्ची घटना आप लोगों से शेयर करना चाहूंगी । हर व्यक्ति दुनिया को अपने चश्में से देखता है और उसके मापदंड भी अपने आर्थिक  स्तर से जुड़े होते हैं,  एलिट क्लास की एक उच्चपदस्थ महिला ने अपनी एक वकील दोस्त से कहा --- प्लीज़ गीव  मी द लिस्ट ऑफ नाईट शेल्टर्स इन देल्ही ।

वकील दोस्त -- वट विल यू डू विद द लिस्ट ?

महिला --- इट इज़ सो कोल्ड , पुऊर पीपल शिवरिंग वीद कोल्ड Eआय विल डिस्ट्रीब्यूट सूप टू देम
 अब वकील दोस्त हैरान हो गयी । उनको गरीबों की मदद का ये तरीका थोड़ा अटपटा लगा लेकिन  उन्होने ज़रा मज़ा लेते हुए कहा --- वेज और नॉन वेज, विच सूप ?

महिला ने  अपनी उसी अदा में गंभीरता से कहा --- कम ऑन, ऑफ कोर्स वेज सूप

अब वकील मित्र ने और चुटकी ली -- यू नो.. दे डोंन्ट लाईक सूप एंड आल, प्लीज गीव दैट सूप टू मी एंड माई  फ्रैंडस , गीव देम समथिंग एल्स टू ईट.

मंगलवार, जनवरी 4

क्या मैं सच में आत्मा से मिली थी...सर्जना शर्मा

मेरे सभी ब्लॉगर साथियों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं  । मैं अपने उन सभी नए ब्लागर मित्रों से पहले तो क्षमा मांगनी चाहूंगी कि उन्होने रसबतिया को हाथों हाथ लिया और मेरी  हौसला अफजाई की लेकिन मैं धन्यवाद भी नहीं दे पायी कईं कारणों से व्यस्त रही । मैं आप सबको व्यक्तिगत रूप से मेल लिखूंगीं और आप सबको अच्छे से जानने की कोशिश करूंगी ।आपने तो मेरे सहयोगी खुशदीप जी के माध्यम से मुझे जाना और अपना स्नेह दिया । लेकिन यकीन मानिए आपके स्नेह ने मेरा उत्साह बहुत बढ़ाया है । दिसंबर में एक साथ चार पोस्ट लिखने के बाद मैं कुछ लिख ही नहीं पायी । आज अपनी मौसेरी बहन पर लिखा है । जैसा कि मैनें अपने परिचय में भी  कहा है कुछ दिल की कुछ जग की। आज मैनें अपने दिल की पोस्ट लिखी है । पिछले एक महीने से मैं अपनी इन्हीं मौसेरी  बहन को लेकर मानसिक रूप से बहुत परेशान थी। अब उनकी आत्मा देह  से मुक्त हो गयी है । उन पर लिखा  शायद आपको पसंद आए। पढ़ कर अपनी राय ज़रूर दें, शायद आप मेरे दुख को साझा कर सकें । आपकी राय का मुझे इंतज़ार रहेगा ।


वेदों उपनिषदों में , धार्मिक ग्रंथों में  हम पढ़ते आए हैं , ऋषि मुनियों से सुनते आए हैं कि आत्मा बहुत सुंदर होती है , दिव्य होती है । ये आत्मा ही है जो परमात्मा से मिलवाती है । हाड़ मांस की काया के भीतर आत्मा ही है जो हमें सही और गलत का ज्ञान कराती है । आप सब सोच रहे होंगें मैं कोई धार्मिक प्रवचन दे रही हूं । लेकिन ये प्रवचन नहीं मेरा आत्मा संबंधी एक अनुभव है, जो मैंने हाल ही में 29 दिसंबर को  किया । अब तक आत्मा संबंधी मेरा किताबी ज्ञान ही था लेकिन आत्मा सचमुच सुंदर होती है। और आत्मा का आत्मा से संबंध होता है, ये मैनें स्वयं अनुभव किया ।

मेरी मौसेरी बहन सरोज जो हमेशा मेरी सगी बहन से भी बढ़ कर थी मेरे लिए । बचपन की उनकी जो यादें मेरे मन मैं हैं । वो रात को मुझे और मेरी छोटी बहन को अपने पास सुलाती थी कहानियां सुनाती । उन्हें बचपन में पोलियो हो गया था। मेरी मां उन्हें सहारनपुर से अपने पास पंचकूला ले आयी थीं । पास ही के साकेत विकंलाग संस्थान में उनका इलाज चलता था । और अगर कभी  मेरे मौसा जी जिन्हें हम पिता जी कहते थे उन्हें आकर ले जाते तो मैं उनके बिना बीमार पड़ जाती और चार के दिन भीतर उन्हें छोड़ने आना पड़ता । मैं सात या आठ साल की रही होंगी कि उनकी शादी हो गयी । उनका गोल सुंदर चेहरा , गोरा रंग मेरे जेहन में आज भी ताज़ा है । उनकी शादी के बाद सब खुश थे कि चलो अच्छा घर मिल गया और शादी हो गयी । सरोज बहन जी मेरी सबसे बड़ी मौसी की बेटी थी । और मेरी मां चारों बहनों में सबसे छोटी । लेकिन जल्द ही सब की खुशी मायूसी में बदल गयी, पता चला कि उनके पति काफी धूर्त किस्म के व्यक्ति थे । एक दिन उन्होनें मेरा बहन को कुछ गोलियां खाने को दीं लेकिन मेरी बहन ने अपने पास रख लीं और कहा बाद मैं खा लूंगी । उसी दिन पता नहीं क्यों मेरे मौसा जी को लगा कि सरोज के साथ कुछ अप्रिय होने वाला है और वो अपने दफ्तर से ही उनकी ससुराल चले गए। बहन जी ने मौसा जी को वो गोलियां दिखायीं तो मौसा जी ने गोलियां अपनी जेब में डाल लीं और बहन जी से कहा कि अपना सामान पैक कर लो और ससुराल वालों से ये कह कर उन्हें ले आए कि इसकी मां की तबियत खराब है, वो इससे मिलना चाहती है । और उसके बाद बहन जी कभी  अपनी ससुराल नहीं गयी । क्योंकि वो ज़हर की गोलियां थी । शायद ये एक पिता के दिल की आवाज़ थी जो उस दिन उन्हें बेटी के ससुराल ले गयी। अगर वो उस  दिन ना जाते तो ना जाने क्या  अनर्थ  हो जाता । मौसा जी ने ना अपना सामान वापस मांगा, ना कोई रिपोर्ट लिखाई । उन्हें बस इसी बात की खुशी थी कि उनकी बेटी की जान बच गयी। पंचायतऔर बिरादरी बुला कर रिश्ता हमेशा हमेशा के लिए तोड़ दिया गया । हम उस समय बहुत छोटे थे लेकिन बड़ों की कुछ कुछ बातें सुनते और बाद में जब बड़े हुए तो पूरे किस्से समझ आए ।

सरोज बहन जी भी चार बहनें हैं। उनके भी कोई भाई नहीं है। लेकिन चारों और दो हम बहनें पिता जी यानि मौसा के दिल के टुकड़े थे, वे हमें बेहद प्यार करते थे । मौसा जी की रिश्तेदारी में एक महिला सरोज बहन जी के लिए दोबारा रिश्ता लायी जो कालका ( हरियाणा में शिमला के रास्ते में है ) के पंजाबी ब्राह्णण परिवार का था लेकिन प्रस्तावित वर राजेंद्र जी विधुर थे । उनकी अपनी चार संतान थीं- एक पुत्र सबसे बड़ा और तीन बेटियां । बहन जी की शादी उनसे हो गयी और बहन जी फिर से हमारे पास ही आ गयीं । राजेंद्र जीजा जी बहुत भले इंसान थे और रेलवे में अच्छे पद पर थे । उनका बड़ा संयुक्त परिवार था और सब एक साथ रहते थे। वो सबसे बड़े थे । उनके तीन भाई जिनमें से दो उस समय शादी शुदा थे। तीन बहनें जिनमें से दो शादी शुदा थीं। माता-पिता भी थे। और उनके  इतने बड़े परिवार में मेरी बहन विमाता बन कर गयीं । आप सोच ही सकते हैं बड़े संयुक्त परिवार में सौतेली मां कि क्या गत रही होगी । मेरी बीजी बहन जी का वो सब करतीं जो कोई भी मां अपनी शादी शुदा बेटी के लिए करती है । त्यौहारों पर हम बहन जी के घर जाते उनकी ससुराल वाले वैसे  बहुत अच्छे थे लेकिन मेरी बहन के लिए राह आसान नहीं थी ये मुझे बचपन में भी अहसास होता था । लेकिन मुंह पर एक शिकन लाए बिना उन्होनें घर की बड़ी बहू और मां के सभी कर्तव्य हंसते हंसते निभाए हांलांकि वो अपनी देवरानियों से उम्र में बहुत छोटी थी । उनके प्रति हमारा. हमारे प्रति उनका स्नेह बहुत ज्यादा रहा । यहां तक कि अपनी सगी बहनों से भी उनका वो रिश्ता नहीं था जो हमारे साथ था । उनकी हर बात में हमारे लिए विशेष स्नेह रहता, शादी ब्याहों में पूरा परिवार एकत्र होता तो उनका पूरा ध्यान मुझ पर और मेरी बहन पर रहता। ये पहनो, बाल ऐसे बनाओ। हमारी पढ़ाई में उनकी विशेष रूचि रहती । वो स्वयं तो बहुत ज्यादा नहीं पढ़ पाई । लेकिन जब मैं और मेरी बहन उच्च शिक्षा लेते गए तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था । शायद अपने अधूरे अरमानों को वो हमारे भीतर पूरा होते देखती थी ।
                                        
साल बीतते गए देखते देखते बहन जी के भी अपने दो बेटे हो गए और जीजा जी की पहली पत्नी के बच्चों की भी शादियां होती गयीं । हम नौकरी के लिए दिल्ली आ गए उनसे मिलना जुलना कम होता गया लेकिन संपर्क बना रहा । मेरे पापा नहीं रहे तो वो जीजा जी के साथ दिल्ली आयीं और छह महीने बाद जीजा जी भी नहीं रहे । उसके बाद वो बीमार रहने लगीं । दो महीने पहले फोन आया कि सरोज बहन जी को कैसर हो गया है आकर मिल जाओ । जब मैं और मेरी बहन 5 दिसंबर को उन्हें देखने कालका गए तो वो लगभग अचेत अवस्था में थीं । घर में ही बिस्तर पर अचेत पड़ी मेरी प्यारी बहन हड़्डियों का पिंजरा बन चुकीं थीं । नाक में नली लगी थीं । हमने सोचा सो रही है लेकिन हमें बताया गया कि वो कोमा में है । उन्हें इस हालत में देख कर हम दोनों स्तब्ध रह गए । सबने बताया कि कईं दिन से कुछ रिस्पांड नहीं कर रही हैं । मैंने उनका हाथ थामा और उन्हें आवाज़ लगायी- सरोज बहन जी, तो उनकी आंखों से अविरल आंसू बहने लगे । वो देर तक रोती रही हम भी रोते रहे। उनका पूरा परिवार हैरान था  कि आपको ही रिस्पांस दे रही हैं । हमने कहा इन्हें अस्पताल में दाखिल करा दो लेकिन उनके पूरे परिवार का एक ही जवाब था कि डॉक्टरों ने मना कर दिया है कुछ नहीं हो सकता । सरोज बहन जी की हालत देख कर मेरे दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया, उसी दिन कालका से हम दिल्ली लौट आए । दिल्ली आकर मैनें सरोज बहन जी की सगी बहनों को फोन करके उनके हालात के बारे में बताया और कहा कि कालका बात करें। उन्हें अस्पताल में दाखिल कराएं। लेकिन उन्होनें ये कह कर पल्ला झाड़ लिया कि ये उनके घर का मामला है हम क्या करें ।
                                           
हमने उनके सौतले बड़े बेटे जो कि अमीर बिज़नेसमैन है से बात की कि आप अपनी मां को अस्पताल में भर्ती करा दो ।  बहुत कठिनाई से वो माना । मैने चंड़ीगढ़ के 32 सेक्टर के अस्पताल में उनके लिए बेड का इंतज़ाम करवाया। हमारे बचपन की सहेली सुनीता वालिया  ने सारा प्रबंध किया और कहा कि वो बहन जी की देखभाल और इलाज करवा लेगी । क्योंकि सरोज बहन जी से उनका भी लगाव था । लेकिन अगले दिन बहन जी की सौतेली बड़ी बेटी का फोन आ गया कि हमें फोन कर कर के परेशान मत करो, तुम्हे क्या लगता है कि हम इनका इलाज नहीं करवा रहे हैं । हमने बेस्ट इलाज करवा लिया । अब हमारे पास कोई रास्ता नहीं बचा था । सबने हमें समझाया कि अब भगवान पर छोड़ दो । हर समय दिल में उन्हीं का ख्याल रहता लेकिन बेबस थे ।
 29 दिसंबर की रात को मैनें सपने में सरोज बहन जी को देखा वो इतनी सुंदर लग रही थीं जैसी अपनी पहली शादी में। उससे भी कहीं ज्यादा सुंदर चेहरा भरा हुआ, बिल्कुल गोरी चिट्टी और मुखमंडल पर देवी जैसी आभा। चेहरे के चारों तरफ प्रकाश वलय । मैनें उनसे पूछा बहन जी आप टीक हो गयीं। उन्होने कहा हां. लेकिन अब मैं जा रही हूं। ये कह कर उन्होनें मुझे अपने सीने से लगा लिया । और हम दोनों बहुत रोए । पिर वो चलीं गयीं । मेरी आंख खुल गयीं । मैं समझ गयी कि अब उनकी आत्मा शरीर से मुक्त होने वाली है, मन बहुत उदास हो गया । मैनें अपना सपना घर में किसी को नहीं बताया । इकत्तीस दिसंबर मेरे पापा की पांचवी बरसी थी । मेरे पापा ने सफला एकादशी के दिन  देह त्यागी थी । उसी दिन सुबह आठ बजे कालका से फोन आया सरोज बहन जी नहीं रहीं । मेरा सपना सच हो गया । तो क्या 29 दिसंबर की रात को उनकी आत्मा मुझसे मिलने आयी थी । मैं तो यही कहूंगी कि उनकी आत्मा उतनी ही सुंदर थी जितनी वो मन से सुंदर थीं । हड्ड़ियों का पिंजरा बन चुकी बहन जी का वो रूप तो सपने के रूप से बिल्कुल अलग था। वो जाने से पहले अच्छे से मिल कर गयीं । उनकी बुरी खबर मैनें अपनी बीजी  को बतायी तो वो रोने लगीं । हालांकि पता तो था ही कि वो ज्यादा दिन की मेहमान नहीं हैं ।फिर मेरी बीजी ने भी अपना सपना बताया जो उन्हें 30 दिसंबर की रात को आया कि एक गाय के मुंह से एक बहुत सुंदर चिड़िया निकल कर उड़ गयी । मेरी बहन सरोज सचमुच स्वभाव से गाय थीं और वो सुंदर चिड़िया उनकी आत्मा ।

तो क्या उनकी हाड़ मांस की काया ही जीर्णशीर्ण हो गयी थी । काया के भीतर उनकी सुंदर आत्मा का वास था जो 29 दिसंबर की रात को मुझ से मिलने आयी थी । और उन्होने देह त्यागने का दिन वही चुना जो मेरे पापा और उनके मौसा जी ने चुना था । सनातन धर्म में माना जाता है कि एकादशी के दिन बैकुंठ के कपाट खुले होते हैं     और आत्मा सीधे विष्णु जी के चरणों में जाती हैं जहां मोक्ष मिल जाता है । अगर ये सच है तो मेरी विष्णु जी ये यही प्रार्थना है कि वो मेरी भोली भाली त्यागमयी करूणामयी बहन को मोक्ष  दे दें । फिर उनका धरती पर जन्म ना हो, क्योंकि इस जन्म में उन्होनें जितनी तकलीफें उठायीं, दुख भोगा, उन्हें फिर कभी ना भोगना  पड़े।