शुक्रवार, सितंबर 23

अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो....सर्जना शर्मा



अस्पताल के गलियारे में वो मुझे यदा कदा टहलते मिलतीं, छोटा सा कद, भारी भरकम शरीर हम दोनों की नज़रें मिलती लेकिन संवाद कोई नहीं होता. एक सुबह जब मैं नर्सिंग स्टेशन से नर्स को बुला कर लौट रही थीं तो उन्होनें पूछा आपका कौन  दाखिल है ? मुलायम, मीठी आवाज़  में आत्मीयता थी । मैंने बताया मेरी मां दाखिल है और उनकी सर्जरी होगी । उन्होनें बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाया, बोलीं- मेरी भी सर्जरी हुई है । एक हर्निया की और दूसरे यूटरेस निकलवाना पड़ा । बहुत तकलीफ में थी पांच साल से । मैनें पूछा इतनी तकलीफ क्यों बरदाश्त की, पहले क्यों नहीं करा लिया ? कहने लगीं मेरी उम्र ही क्या है केवल 37 साल । मेरी दो बेटियां है सोच रही थी एक बेटा हो जाए लेकिन भगवान ने सुनी ही नहीं । अपनी सोच के अनुसार मैनें उन्हें तसल्ली दी और कहा क्या फर्क पड़ता है, आजकल बेटी हो या बेटा ।

उनकी बड़ी बड़ी आंखों में आंसू भर आए --फर्क क्यों नहीं पड़ता पड़ता है हमारी जाति में तो बेटे की बहुत अहमियत है । मेरे  भी चार भाई हैं, मेरे पति तीन भाई हैं, बाकी दो भाइयों के बेटे हैं, मेरी ननदों के भी बेटे हैं.  हम बनिए हैं हमारे समाज में बेटा होना ज़रूरी है । समाज को छोड़िए अपनी सोचिए आपको फर्क नहीं पड़ना चाहिए । उनकी आंखों से आंसू बहने लगे मुझे भी फर्क पड़ता है , बहुत फर्क पड़ता है । कल को मेरी बेटियों का क्या होगा उनका तो पीहर ही नहीं रहेगा. आप जानती हैं ताऊ चाचा के बेटे कौन किसी के अपने भाई ही अपने होते हैं । अब मुझे देखो मेरे चार भाईयों से मेरा पीहर हरा भरा है, बार-त्यौहार को मेरे भाई भतीजे आते हैं, मैं अपने मायके जाती हूं ।  वो दलीलें पर दलीलें देती जा रही थीं । अब मैनें चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी उनका मन बहुत आहत था मैं उन्हें और दुखी नहीं करना चाहती थीं उनकी मनस्थिती किसी की बात सुनने की नहीं लग रही थी । शायद वो अपने मन का भार हल्का करना चाह रही थीं, ये सब बातें शायद वो अपनी देवरानी , जेठानी या ननद से नहीं कहना चाहती थीं...

कई बार किसी अपने के सामने अपने दिल की बात कहने में हमें संकोच होता है और किसी बिल्कुल अंजान के सामने हम अपना दिल हल्का कर लेते हैं । फिर वो मेरी मां से मिलने भी आयीं, मेरी मां ने भी उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन एक बेटा ज़रूर होना चाहिए, इस के पक्ष में उनके पास अकाट्य तर्क थे ।

उनकी सोच के लिेए उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता परंपरागत परिवार में पालन पोषण पारंपरिक सोच और बेटे को वंश का वाहक माना जाना  इसके कारण हैं। बेटे की मां का रूतबा ससुराल में उस बहु से ज्यादा होता है जिसके केवल बेटियां होती हैं । ससुराल में अपनी स्थिती मज़बूत बनाने के लिेए भी महिलाओं के लिए   बेटे सबसे बड़ा माध्यम होते हैं । जिन बेटों के लिए कोख में ही कन्या भ्रूण हत्याएं की जा रही हैं क्या वो सचमुच मां बाप के बुढ़ापे का सहारा बनते हैं । बहनों के लिए मायके के दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं ? अगर इस बारे में सर्वे कराया जाए तो परिणाम उन महिलाओं के लिए निराशाजनक होंगें जो बेटों के लिए अ्काट्य तर्क देती हैं । इसके अनेक उदाहरण आप सबके पास भी होंगें । मैं आपको एक ताजा़ उदाहरण देती हूं।

अस्पताल में मेरी बीजी जिस कमरे में हैं उन्हीं के साथ वाले बेड़ पर एक पंजाबी बुजुर्ग महिला भर्ती हैं । उनके साथ अस्पताल में उनकी सेवा के लिेए ज्यादतर उनकी बेटियां ही रहती हैं । विवाहित और अविवाहित । अपनी मां को बेडपैन देना , उल्टी आदि साफ करना सब बेटियां ही कर रही हैं । जबकि उनके बेटे बहू भी हैं । मैनें उन्हें कईं बार कहते सुना --" जै मेरियां धीयां ना होंदियां ते मेरा की होंदा ।"(अगर मेरी बेटियां ना होतीं तो मेरा क्या होता )
                                         
बेटा होने पर बेटियों के लिए मायके के दरबाज़े खुले ही रहेंगें इसकी भी क्या गारंटी है । मेरे बचपन की सहेली है स्कूल के दिनों से एक साथ पढ़े उसकी छोटी बहन मेरी छोटी बहन की सहपाठी थी । पंजाब में उनका बड़ा ज़मींदारा था, आठ गांव के मालिक थे । हम चारों बहनों की तरह रहते । उनके बीब्बी पिता जी हमारे लिए बीब्बी पिता जी और हमारे बीजी पापा जी उनके बीजी पापा जी । उनके दो भाई ,दोनों बहनों से बड़े । दोनों भाइयों की  मामूली घरों की लडकियों से इसलिए शादी की गयीं की, कायदे से रहेंगीं । उनके कुछ गांवों की ज़मीन शहर बसाने के लिए एक्वायर की गयी । करोड़ों रूपया मुआवज़ा मिला । पिता जी ने दोनों बेटियों को मुआवज़े में से 30 - 30 लाख रूप दे दिया । बस यहीं से रिश्ते बिगड़ गए , भाभियों ने घोर विरोध किया , भाइयों की क्या हिम्मत की अपनी पत्नियों की बात का विरोध करें । इसी बात को लेकर क्लेश इतना बढ़ा कि बीबी पिता जी को विशाल घर छोड़ कर किराए के मकान में रहना पड़ा । और दोनों बहनों की घर में एंट्रीं बंद ।

ना तीज ना त्यौहार । जब सारे समाज ने थू थू किया तो उन्हें माता पिता को घर वापस लाना पड़ा । क्योंकि पूरे इलाके में पिता जी का सामाजिक रूतबा था । लेकिन बहनों के लिए घर के दरबाज़े बंद हैं । अगर बहनें अपनी पर उतर आतीं और बराबर के हिस्से के लिए अदालत चलीं जातीं तो भाई भाभियों को लेने के देने पड़ जाते। पिर लाख तो क्या करोड़ों से हाथ धोने पड़ते और मौजूदा संपत्ति में बराबर का हिस्सा भी देना प़ड़ता । लेकिन दोनों बहनें अब भी अपने भाइयों को दिल से प्यार करती हैं और कहतीं है जायदाद के लिए कभी अदालत नहीं जाएंगीं । अपने आसपास आप ना जाने कितने ऐसे किस्से रोज़ घटते देखते होंगें लेकिन फिर भी बेटों की चाह कम नहीं होती । हरियाणा में क्या हालत पैदा हो चुके हैं ये तो खबरों में हम और आप पढ़ते ही रहते हैं । दूसरे राज्यों से शादी के लिए लड़कियां खरीद कर लायी जा रही हैं । 
                                                              
 अब भी समाज ने सोच नहीं बदली तो परिणाम भयंकर होंगें । बेटे और बेटियां दोनों ही होंगें तो आबादी का संतुलन बना रहेगा । बेटी ना हो केवल बेटे ही हों ये सोच बदलनी होगी । ये याद रखना  है कि बेटे के लिए बहू बन कर किसी दूसरे की बेटी आपके घर में आएगी । और आपकी बेटी किसी के घर दुल्हन बन कर जाएगी । इसलिए कन्या भ्रूण की कोख में ही  हत्या ना करें उसे दुनिया का उजाला देखने दें, वो आज आपके घर की रौनक तो कल किसी के धर के आंगन की शोभा बनेगीं ।

रविवार, सितंबर 18

हंसी हंसी की बात है...सर्जना शर्मा



जो आदमी हमेशा खिला-खिला रहता है...हर वक्त हंसता रहता हो उसे हंसमुख कहते हैं...

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लेकिन जिस आदमी का थोबड़ा हमेशा फूला रहता हो...हंसी हमेशा के लिए बंद हो गई हो उसे क्या कहते हैं...

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उसे कहते हैं........HUS...BAND


 

रविवार, सितंबर 11

गणपति उत्सव...पति का सवाल पत्नी से...सर्जना शर्मा

मुंबई में गणेश उत्सव की धूमधाम के बीच एक पति ने पत्नी से कहा...




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काश मैं भी गणपति होता...फिर तुम मुझे बैठाकर कैसी खातिरदारी करती...दिन रात पूजा करती...तरह तरह के मोदकों का भोग लगवाती...

पत्नी...वाकई कितना अच्छा होता, मेरे लिए भी....हर साल नया पति...फिर विसर्जन...

मंगलवार, अगस्त 30

मोहे कपट, छल छिद्र ना भावा...



सर्जना शर्मा

            जन्माष्टमी से दो दिन पहले अखबार के साथ एक सुंदर सा रंगीन हैंडआऊट भी आया । ये हमारे इलाके के सनातन धर्म मंदिर के श्री कृष्णजन्माष्टमी समारोह के बारे में था । क्या क्या कार्यक्रम होंगें इसका पूरा ब्यौरा ,आयोजकों के नामों की लंबी चौड़ी सूची जैसा कि अक्सर होता ही है किसी का भी  नाम छूटने ना पाए इसकी पूरी कोशिश आयोजकों की रहती है । लेकिन इसमें एक बात जो सबसे अलग थी वो ये कि

चरणामृत सेवा ----  कमल चौधरी ( सभी नाम बदले हुए हैं )

केले का प्रसाद ------- अनुज गुप्ता

सेब का प्रसाद -----   संजय सूद

पंजीरी              ------  राज किशोर तनेजा

धनिए का प्रसाद ---    विनोद अग्रवाल

                                               और इस तरह से एक लंबी सूची थी । ऐसा मैनें तो  कम से कम पहली बार देखा कि भगवान को चढ़ाने वाले भोग का भी बखान किया जाए और बाकायदा नाम छपवाए जाएं । ये भगवान के प्रति भक्ति भाव है या जन्माष्टमी के बहाने अपने नाम का गुणगान करने की इच्छा पूर्ति । आज धार्मिक आयोजन शहर में अपनी धाक जमाने का माध्यम बन चुके हैं । व्यापारी वर्ग इसमें आमतौर पर आगे रहता है और मुख्य  अतिथी ज्यादातर बड़े पदों पर बैठे अफसर या फिर सियासी दलों के नेता होते हैं । दो साल पहले कृष्ण जन्माष्टमी का एक निमंत्रण आया . कवरेज के इरादे से भेजा गया था . साथ में दो तीन वीआईपी पास भी भेजे गए । दिल्ली में इनका जन्माष्टमी उत्सव काफी बड़ा और भव्य होता है । फिल्म जगत में बरसों अपनी सुंदरता के बल पर टिकी रहने वाली एक जानी मानी अभिनेत्री और नृत्यांगना इनके यहां नृ्त्य नाटिका प्रस्तुत करती हैं ।   वहां जो कवर करने गए और जो वीआईपी पास पर गए दोनो के ही अनुभव बहुत खराब रहे । रिपोर्टर को बैठने तक की जगह नहीं दी गयी । पानी तक नहीं पूछा और जिन्हें वीआईपी पास दिया था उन्होने आम लोगों से भी ज्यादा धक्के खाए और अंत में आम जनता के बीच में ही बैठे । लेकिन आयोजकों ने अपने लिए स्टेज के सामने बढ़िया सोफे और कुर्सियां लगवा रखी थीं । औऱ वहां एसी भी  लगवा रखे थे । खाना पीना भी बहुत बढ़िया चल रहा था क्योंकि वहां नेता और अफसर जो बैठे थे ।

                                                                 एक और सज्जन हैं, बड़े उद्योगपति हैं, निजी  कॉलेज स्कूल भी चलाते हैं. उन्होने मंदिर भी बनवा रखे हैं । साल में दो तीन बार भव्य आयोजन करते हैं जिसमें जाने माने भजन गायक , और  फिल्मी  सितारे आते हैं,  हेलीकॉप्टर से फूलों की वर्षा करवाते हैं, गायकों को लाखों रूपए देते हैं । लेकिन किसी गरीब और ज़रूरतमंद की मदद करने को कह दिया जाए तो सुनी अनसुनी कर देते हैं । बात को ऐसा टालते हैं कि पूछिए मत, टरकाने की कला भी उन्हें बहुत अच्छी आती है ।

                                                     भगवान स्वयं कहते हैं कि --"-मोहे कपट , छल छिद्र ना भावा , सरल स्वभाव सो मोही पावा "। उन्हें तो केवल भक्ति भाव चाहिए लेकिन आज धर्म के नाम पर आडंबर और दिखावा ज्यादा है । जब तन मन धन सब है तेरा , तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा का भाव इंसान के मन में सचमुच आ जाएगा तो ऐसे दिखावे करने की जरूरत ही नहीं रहेगी । त्वदीय वस्तु गोविंदं तुभ्यं समर्पयामि हमारी भक्ति परंपरा का अंग रहा है । सनातन परंपरा में मान्यता है हमारे पास जो भी है,  सब कुछ उसी परमपिता परमेश्वर और जगत जननी मां का आशीर्वाद है। जब हम उसी का उसको अर्पण करते हैं तो फिर उसका ढ़ोल क्यों पीटा जाना चाहिए ?

                                               सभी भक्ति और धर्म की आड़ में अपना प्रचार प्रसार करते हों, ऐसा भी  नहीं है । एक जाना माना बड़ा घराना है, हरिद्वार में हर  की पैड़ी उनके पुरखों ने बनवायी और मालिकाना हक भी उन्हीं का है । उन्हीं के परिवार के एक व्यक्ति ने बताया कि उनके पुरखों ने वहां अपने नाम का जो पत्थर लगवाया वो ऐसी जगह पर लगवाया कि जब लोग गंगा जी से स्नान करके बाहर आएं तो उनके चरणों में लगी गंगा जी की रज पत्थर पर लगे  ।

                                         हमारा इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है । पुरी में भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां बनवा कर प्रतिष्ठित  करवायी थी महान प्रतापी राजा इंद्रद्युम्न ने । भगवान जगन्नाथ के कारण राजा इंद्रद्युम्न ने अपना मालवा का राज पाठ छोड़ा और सब को लेकर पुरूषोत्तम  क्षेत्र पुरी में आ गए । पुरी आज चार धामों में से एक है ।  ' जगन्नाथ  रहस्य '   किताब अगर आप पढ़ेगें तो पायेंगें कि राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना  की थी --- मेरे कुल में कोई  ना रहे ताकि कल किसी को ये अभिमान  ना हो कि ये विशाल और भव्य मंदिर मेरे पुरखों ने बनवाया । देखा जाए तो ये भगवान के प्रति अनन्य  समर्पण है ।

भगवान राजा इंद्रद्युम्न जैसे भक्तों के भाव का आदर ना करते हो ऐसा संभव ही नहीं है । जब तक भगवान जगन्नाथ का नाम रहेगा तब तक राजा इंद्रद्युम्न का नाम भी  रहेगा । भगवान जगन्नाथ उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के विग्रह पुरी के श्री मंदिर में एक तो काठ के बने हैं दूसरे अधूरे हैं । इन विग्रहों का निर्माण राजा इंद्रद्युम्न की रानी गुंडीचा के महल में स्वयं देव शिल्पी विश्वकर्मा ने किया था । लेकिन रानी गुंडीचा ने विश्वकर्मा की शर्त का पालन नहीं किया इसलिए विश्वकर्मा अधूरे विग्रह छोड़ कर चले गए थे । लेकिन भगवान का भाव  भी देखिए भगवान जगन्नाथ ने राजा से कहा तुम मेरा मंदिर बनवा कर मुझे  इसी रूप में   स्थापित  करो । और भगवान ने राजा को वचन भी दिया कि ---"हर वर्ष मैं तुम्हारे बिंदु सरोवर पर दस दिन के लिए आऊंगा । उन दिनों में तैंतीस करोड़ देवी देवता पुरी में निवास करेंगें सारे तीर्थ भी  यहां निवास करेंगें जो गुंडीचा में मेरे दर्शन करेंगा उसे जन्म मरण से मुक्ति मिल जाएगी  "।
भगवान जगन्नाथ आज तक अपना वचन निभा रहे हैं और निभाते रहेंगें । हर वर्ष आषाढ़ के महीने में वो सुंदर भव्य और विशाल  रथ पर सवार होकर अपने भाई बहन के साथ गुंडीचा मंदिर जाते हैं । रानी   गुंडीचा को भगवान की मौसी का दर्जा दिया जाता है । और यही कहलाती है पुरी की रथ यात्रा जिसे गुंडीचा यात्रा भी कहते हैं। देश विदेश से लाखों श्रद्धालु भगवान की रथ यात्रा देखने आते हैं । भक्त के भाव में समर्पण हो तो भगवान स्वंय चल कर आते हैं ।

जब तक मैं और मेरा का भाव रहेगा तब तक भक्ति खरी नहीं हो सकती ।  जैसा कि महान कवि और संत कबीर ने कहा है -- जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरि हैं तो मैं नहीं  । सब जानते हैं कबीर ने हिंदु मुस्लिम दोनों को ही धर्म के दिखावे  पर आड़े हाथों लिया । जितना मुल्ला को कोसा उतना ही पंडित को कोसा । धर्म के प्रति उनकी अरूचि थी ऐसा भी नहीं वो केवल एक कवि नहीं महान योगी और सिद्ध भी थे  तभी  तो उन्होने कहा कि जो  मैं को खत्म कर लेगा वही  परमात्मा को पायेगा ।  मैं हमारे भीतर  का अहम है , गुमान है अपने अस्तित्व  का  । उन्होने जब अपने भीतर के   मैं को मिटाकर परम पिता परमात्मा  की शरण ली होगी तभी तो उनका ये भाव आया---- जब हरि हैं तब मैं नहीं  ।
                       भगवान को किसने कितने किलो सोना चढ़ाया किसने चांदी का विशाल छत्र चढ़ाया ऐसी खबरें टी वी और अखबारों में भी अकसर आती रहती हैं । शिरड़ी के सत्य सांई बाबा के मंदिर और तिरूपति में भगवान वैंकटयेश के मंदिर में किसने क्या चढ़ाया ये खबरे आप अक्सर देखते रहते होंगें । जिनका पहले ही बड़ा नाम और हस्ती है वो भी "मैं " के मोह से नहीं छूट पाते ।  जब वो तिरुपति बाला जी को सोना चांदी  चढ़ाते हैं तो टीवी कैमरे उन्हें फॉलो करते हैं । इस दान और चढ़ावे को गुप्त भी रखा जा सकता है ।
 कहते हैं दांए हाथ से क्या दान किया ये बांए हाथ को भी पता नहीं होना चाहिए ।  

                                                                                               

                                                                               

                                                                                     

                                                     

                         

                 

बुधवार, अगस्त 24

भादो की लस्सी कुत्तो की, कार्तिक की लस्सी पूतों को



  सर्जना शर्मा
             
 भादो की लस्सी कुत्तो की, कार्तिक की लस्सी पूतों को....
   ये सुनने में केवल एक लोक कहावत लगती है लेकिन इसके बहुत गूढ़ अर्थ हैं । और ये सीधा सीधा हमारी सेहत से जुड़ा है । हिंदू कैलेंडर का छठा  महीना भादों बरसात के दो महीनों में से एक है । सावन की रिमझिम बारिश में चारों और हरियाली की चादर फैली होती है तो भाद्रपद महीने की धूपछांव सावन की हरियाली को खत्म करने लगती है । हांलांकि बारिश इस महीने में भी पड़ती है लेकिन सूर्य चूंकि तब तक सिंह राशि में आ जाता है और शेर की तरह ही दहाड़ता दिखता है । इस महीने की धूप बहुत तीक्ष्ण होती है । इस महीने में भी  उन्हीं सब बीमारियों का डर रहता है जिनका  सावन में रहता हैं , वायरल , खांसी जुकाम , डायरिया मलेरिया डेंगू आदि । आयुर्वेद में इस महीने में खान पान के नियम बहुत सख्त  रखे गए । इस महीने में दही और लस्सी का प्रयोग तो बिल्कुल मना किया गया है । दही और लस्सी ही क्यों खमीर से बनने वाले जितने भी खाद्य पदार्थ जैसे इडली , वड़ा , डोसा , ढ़ोकला आदि कुछ भी  नहीं खाना चाहिए ।
इस महीने की उग्र धूप से शरीर में पित्त का संचय होता है । इसी कारण आपने देखा होगा कि कईं लोगों को बरसात में बहुत फोड़े फुंसियां निकलती हैं  इसलिए उन सब वस्तुओं के खाने की मनाही है जिससे पित्त बढ़े । अरबी , भिंडी , कटहल जिमिकंद नहीं खाना चाहिए । परवल , करेला , मेथी  दाना , कच्ची हल्दी , चिरायता और गिलोए का सेवन सेहत के लिए बहुत अच्छा है । आयुर्वेद के अनुसार इस महीने में पित्त शांत करने के लिए ठँडे दूध के साथ हरड़ का मुरब्बा खाना चाहिए । आंवले के साथ कुज्जे वाली मिश्री सुबह शाम लेनी चाहिए ।
                                                              इसी महीने में आता है गणेश उत्सव और गणेश जी पर दूर्वा चढ़ाई जाती है । महाराष्ट्र में तो दूर्वा की सुंदर माला बना कर गणेश जी को पहनायी जाती है । नन्ही दूब धार्मिक रूप से वृद्धि और विस्तार का प्रतीक है तो आयुर्वेद के अनुसार इसमें बहुत से गुण है  दूर्वा पित्त को शांत करती है । कोमल दूर्वा का रस अगर खाली पेट लिया जाए तो शरीर की गरमी शांत  होती है । और पित्त भी नियंत्रण में रहता है । दूर्वा  एंटिबायटिक भी है ।
 
                                             चातुर्मास विशेषकर बरसात में सोने से तीन घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए . क्योंकि इन महीनों विशेष रूप से बरसात में जठराग्नि मंद पड़ जाती है और पाचन शक्ति बहुत अच्छी नहीं होती । शुद्ध सात्विक और कम मिर्च मसाले का भोजन करना चाहिए ।
                                     
                                      भाद्रपद महीने  का नाम दो नक्षत्रों उत्तराभाद्रपद और पूर्वाभाद्रपद के नाम से पड़ा है । इस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा इन दोनों में से किसी एक नक्षत्र में होता है । वैदिक काल में इस महीने को नभस्य और षौष्ठपद कहा जाता था । उत्तराभाद्रपद और पूर्वा भाद्रपद दो दो सितारों से मिल  कर बने हैं यानि कुल मिला कर हुए चार सितारे । चारों सितारे मिल कर पलंग के पांयें की आकृति जैसे लगते  हैं । अकेला उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र का प्रतीक जुड़वां है । इसके स्वामी बृहस्पति और शनि हैं इसलिए इसमें सत गुणों  और तमस गुणों का टकराव रहता है ।
                                     भले ही भाद्रपद चातुर्मास का दूसरा महीना है जिसमें सभी  शुभ कार्य करने की शास्त्रों में मनाही है । क्योंकि इन महीनों में मन और तन दोनों ही कमज़ोर रहते हैं । नेगेटिव सोच हावी रहती है इसलिए अच्छे फैसले और शुभ कार्य नहीं किए जाते । लेकिन त्यौहारों और पर्वों की  इस  महीने में भरमार है । भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी उनकी शक्ति और सखी राधा रानी की जन्माष्टमी ,भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म , प्रथम पूजे जाने वाले गणपति बप्पा के जन्म की चतुर्थी और फिर पूरे दस दिन का गणपति उत्सव , भगवान विष्णु का वामन अवतार , केरल का ओणम उत्सव ये भी  दस दिन तक चलता है । पूरा केरल फूलों की रंगोलियों से सज जाता है । अपने राजा बलि के धरती पर आगमन की खुशी में केरलवासी दस दिन का उत्सव मनाते हैं । भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराजा बलि से तीन पग धरती मांग ली थी और फिर तीन पग में पूरा ब्रह्मांड माप लिया और राजा बलि को पाताल में भेज दिया था । अपनी प्रजा को बलि बचन देकर गए थे कि इस महीने में दस दिन के लिए वो पृथ्वी पर हर साल आयेंगें । इसी महीने में जाहरवीर गुगापीर का पर्व भी आता है । और सुहागिनों का पर्व हरितालिका तीज भी  इसी  महीने में मनाया जाता है ।
 
                                               और भी बहुत से आंचलिक पर्व है भादों के महीने में । सारे उत्सव ,सारे पर्व मनाएं लेकिन साथ ही ऋतुचर्या के अनुसार चलें सेहत एकदम फिट रहेगी ।
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मंगलवार, अगस्त 23

अगर अन्ना की शादी हो गयी होती तो...सर्जना शर्मा



 अन्ना हज़ारे के आंदोलन की सफलता को लेकर जहां गंभीर राजनीतिक बहसें छिड़ी हुई हैं । बुद्धिजीवी अन्ना हज़ारे के आंदोलन को सही और ग़लत ठहराने में लगे हैं वहीं चुटकलों का बाज़ार भी गर्म है एक चुटकला अन्ना के आंदोलन की सफलता के कारण पर ----

 ---  अगर अन्ना की शादी हो गयी होती तो ये आंदोलन कभी सफल ना होता । क्योंकि पत्नी सवाल करती ----

---   कहां जा रहे हो ?

---  अकेले तुम्हे ही क्या पड़ी है अनशन करने की ?

--- इस केजरीवाल का साथ छोड़ दो ?

---- वो बॉयकट बालों वाली महिला कौन है बार बार तुम्हारी बगल में आकर क्यों बैठती रहती है ?

-- सारा दिन रात रामलीला  मैदान में ही पड़े मत रहना । समय से घर आ जाना ।

--वहां पहुंचते ही फोन करना उधर से लौटते में एक किलो भिंडी ले आना और हां घर में पैसे भी खत्म हैं बैंक से पैसे भी  निकलवा लाना  ।

शनिवार, अगस्त 20

अपना घर संवारे सरकार, सब संवर जाएगा





सर्जना शर्मा

  आप में से कइयों ने सारांश फिल्म देखी होगी जिसमें एक बूढ़ा पिता विदेश से आयी अपने जवान बेटे की लाश लेने के लिए एयरपोर्ट पर कस्टम विभाग के चक्कर काटता है उससे रिश्वत मांगी जाती है और एक दुखी  पिता के दिल का गुबार आक्रोश में बदल जाता है और वो बड़े अधिकारी के कमरे में जाता है और पाता है कि वहां कुर्सी पर बैठा अफसर तो उसका अपना ही पुराना स्टूडेंट है । अपने गुरू का ऋण चुकाने का समय आया तो स्टूडेंट पीछे नहीं रहा और वह बूढ़ा बिना रिश्वत दिए अपने बेटे की लाश घर ले जाता है । लेकिन ज़रा सोचिए ऐसे कितने लोग होंगें जिन्हें अपने पुराने स्टूडेंट मिल जाते हैं । आम आदमी को तो हर रोज रिश्वत की चक्की में पिसना पड़ता है । आप सबके पास सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार के ना जाने कितने अनुभव होंगें और कितने आपने अपने दोस्तों , रिश्तेदारों से सुने होंगें ।
 पिछले साल अक्तूबर में हमारी एक आंटी का निधन हुआ उनके पति तो पहले ही परलोक सिधार चुके थे और दोनों बच्चे विदेश में बसे हैं । आंटी जीवन से भरपूर थीं अपनी शर्तों पर अपना जीवन जीती थी मस्त रहती और एक्टिव सोशल लाइफ बिताती थीं हमसे आंटी का विशेष स्नेह था । आंटी नोएड़ा के आर्मी सेक्टर में रहती थीं । उनके निधन के बाद दोनों बच्चों को विदेश जाना था . डेथ सर्टिफिकेट लेना ज़रूरी था लेकिन जिन जनाब को देना था उन्होने किसी के माध्यम से मोटी रिश्वत मांगी  क्योंकि वो भी जानता था कि इन्हें विदेश लौटना ही है और उससे पहले सर्टिफिकेट चाहिए । उन्होनें हमसे भी बात की । 
हमने एक स्थानीय पत्रकार के माध्यम से उन सरकारी कर्मचारी से बात की उन्होनें जो जवाब दिया आप भी सुनिए --- "तुम्हें क्या पड़ी है? काम अपने तरीके से होता है तुम्हें ज्यादा जल्दी है तो जा कर डीएम से मिल लो "? इशारा साफ था कि मेरे रास्ते में मत आओ । बरसों से विदेश में बसे दोनों भाई बहन मौत पर भी रिश्वत मांगने से परेशाऩ हुए और कहने लगे अच्छा है हम इंडियां में नहीं रहते इस सबसे बचे हुए हैं ।
 
                                                                   एक दिन अपने नोएडा फिल्म सिटी ऑफिस से निकल कर मैं तिपहिया आटो  लेना चाहती थी . लेकिन यहां के ऑटो स्टेंड से ऑटो लेना कोई हंसी खेल नहीं है। दाम तो ऐसे बताते हैं कि इंसान इससे अच्छा तो टैक्सी ही ले ले । उन्हें इगनोर करते हुए मैं आगे बढ़ रही थी कि कुछ आटोटालक मेरे पीछे पीछे आ गए मैडम कहां जाना है । मैने कहा मेन सड़क से ले लूंगी तुम्हारे रेट ज्यादा होते हैं । लेकिन उनमें से एक दो बाजिब दाम पर चलने को स्वयं राजी हो गए ।
 मैं एक आटो में बैठचालक ने स्वयं  बात शुरू की ----"मैडम माफ करना क्या करें ज्यादा दाम लेना हमारी मजबूरी है । घर परिवार चलाना बच्चे पालना और फिर हर महीने पुलिस को 1500 रूपए देना । आप  बताएं हम कहां से लायेंगें सवारी से ही निकालेंगें ना लेकिन मैडम आप मेरा मोबाइल नंबर ले लो आप को जब जाना हो एक आध घंटा पहले मुझे फोन कर देना मैं आपके ऑफिस के सामने आ जाऊंगा "।
 ये किस्सा 2009 का है ।
                                  मैं अक्सर मौर्निंग शिफ्ट में ऑफिस आती हूं . सुबह सुबह साढ़े पांच छह बजे यूपी और दिल्ली पुलिस की बहुत सी करतूतें देखते ङुए आती हूं । कहीं ट्रक रोक कर सीधे सीधे नोट ले रहे हैं तो कहीं डबलरोटी , बिस्कुट और रस बेचने की साइकिल या सेकूटर रोक कर खड़े रहते हैं और वो बेचारा उन्हें मुफ्त की डबलरोटी , बिस्कुट देकर ही जान छुड़ाता है । इस बार दीवाली पर तो हद ही हो गयी । एक आदमी फूलमालाएं लेकर जा रहा था । दीवाली से दो तीन दिन पहले फूल मालाएं बहुत महंगी हो जाती हैं । उसे भी रोक कर पुलिस वाले उससे मुफ्त की मालांए दे रहे थे ।
                                             
                     नीचे के स्तर पर भ्रष्टाचार के ये दो तीन मेरे अपने निजी अनुभव हैं , अनुभव तो और भी कईं हैं लेकिन अनंत गाथा लिखना बेकार है । सरकारी कर्मचारी जिन्हें सरकार उनके काम के बदले वेतन के अलावा भी बहुत कुछ देती है वो एक दिहाड़ीदार कामगार से भी पैसा एंठने में शर्म नहीं करते ।
                 अन्ना हज़ारे को जो आज इतना समर्थन मिल रहा है वो हम और आप जैसे भष्टाचार के सताए लोगों का ही मिल रहा है । सरकार से मिलने वाले वेतन को तो भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी केवल सूखी रोटी मानते हैं उस पर लगाने के लिए मख्खन तो रिश्वत से आता है । औऱ आजकल तो मोटी मलाई वाले विभागों में नौकरी करना बड़ा रूतबा है । रिश्ते  करते समय लोग बहुत शान से कहते हैं -- अजी सैलरी पर ना जाए उपर की कमाई बहुत है आपकी बेटी राज करेगी । हम मान चुके हैं और स्ववीकार कर चुके हैं कि रिश्वत लेना देना कोई बुराई नहीं है । हम नेताओं को भले ही दिन रात कोस लें लेकिन नौकरशाही को खंगालने लगेगें तो भ्रष्टाचार के छोटे बड़े इतने किस्से सामने आयेंगें कि सात समुद्र की स्याही बनाने पर भी लिखे नहीं जा सकेंगें । कईं बड़ी मछलियां तो फंसी भी हैं ।
सोनिया गांधी की रैली हो या लाल कृष्ण आडवाणी की मुलायम सिंह की हो या मायावती की ।
 
                                         लोगों की तो छोड़िए सरकार को ही अपने संस्थानों पर भरोसा नहीं है । बड़े और छोटे नेताओं और सरकारी अफसरों के बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते, मंहगें निजी स्कूलों में या विदेशों में पढ़ते हैं । नेता अपना इलाज सरकारी अस्पतालों में नहीं करवाते । या तो निजी पांचसितारा अस्पतालों से करवाते हैं या फिर विदेशों में जाते हैं । सबसे ताजा उदाहऱण तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का है । यानि ये लोग मानते हैं कि सरकारी संस्थान भरोसे लायक नहीं है । सरकारी अस्पताल बदहाल है । इलाज के लिए गरीबों के धक्के खाने पड़ते हैं ड़ॉ हैं तो दवाई नहीं , दवाईं हैं तो बेड नहीं मिल पाता ।
 
   विदेशों में इसके विपरीत है । मेरी एक जूनियर आजकल कनाडा में है । उसके पति आईबीएम के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं । वो भारत से गयी तो प्रेगनेंट थी । वो महेशा टच में रहती है फेस बुक से फोन से । सने बताया कि उसका पूरा लाज और डिलीवरी सरकारी अस्पताल में ही हुई । वो सरकारी बस से ही हर रोज़ अस्पताल जाती । वहां के लोग उसे बस में चढ़ते देखते तो आगे बढ़ कर उसका हाथ थाम लेते प्यारी सी मुस्कान देते बैठने की जगह देते और पूछते आर यू कमफर्टेबल ।
 
और उसने बताया कि सरकारी अस्पताल भारत के मंहगें पांच सितारा अस्पतालों जैसे साफ सुथरे , सुविधाओं से युक्त । सारी दवाएं अस्पताल स्वंय देता है । औऱ ड़ॉक्टरों का रवैया बहुत ही अच्छा । उसने बताया कि ड़ा. उसका चेकअप अच्छे से करते । एक डॉ. ने तो उसे बच्चों की प्यारी प्यारी पेटिंग दी और  कहा अपने बेडरूम में टांगना, तुम्हारा बच्चा भी प्यारा होगा ।
                                        ऐसे व्यवहार की अपेक्षा यहां ना तो आम जनता से की जाती है और नाही सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों से । मेरी बहन प्रेगनेंट थी हर रोज एक ही चार्टेड बस से दफ्तर जाती। बस क्योंकि जनकपुरी से बन कर चलती थी धौला कुंआ तक आते आते भर जाती लेकिन कभी किसी ने सीट देना तो दूर अपने साथ एडजस्ट करने की ऑफर भी नहीं दी । औऱ सरकारी अस्पतालों में क्या हाल रहता है वो किसी से छुपा नहीं है । आज निजी संस्थानों में स्कूल और अस्पताल फल फूल रहे हैं । अपनी मनमानी कर रहे हैं और आम आदमी मजबूर है करे तो क्या करे ।
 
                                अन्ना हजारे अगर भ्रष्टाचार मिटाने की बात करते हैं तो क्या गलत है। हां तरीका गलत हो सकता है लेकिन विषय तो हर आदमी से जुड़ा है । हमारे नेताओं और नौकरशाही ने अगर सरकारी संस्थानों को श्रेष्ठ और भ्रष्टाचारमुक्त नहीं बनाया तो फिर निजी क्षेत्र की ही मनमानी चलेगी । यही नेता अपने निजी शिक्षण संस्थान और अस्पताल चला रहे हैं और खूब कमा रहे हैं ।
 सरकार अपना घर संवार लेगी तो बहुत कुछ संवर जाएगा । आम जनता को राहत मिलेगी ।



मंगलवार, अगस्त 2

वो तीज, वो सावन के झूले, अब कहाँ...सर्जना शर्मा


आज  सावन की हरियाली तीज है, लेकिन तीज की उमंग  और उल्लास कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। दिखाई देता है तो बस पांच सितारा होटलों में लगने वाले तीज मेलों में या फिर बड़े संपन्न औद्योगिक घरानों की महिलाएं चैरिटी के लिए तीज मेले लगाती हैं। बरसों से लग रहे इन मेलों में कोई नयापन नहीं है। ये वैसे ही हैं जैसे दिल्ली में और भी कईं प्रदर्शिनयां लगती रहतीं हैं ।
वैसे देखा जाए तो बदलते वक्त की शायद यहीं मांग है। अब किसके पास समय है कि वो सावन के झूले झूले या फिर अपनी सखियों सहेलियों के साथ तीज का त्यौहार मनाएं।  कुछ हाऊंसिंग सोसायटियां भी अपने परिसरों में तीज मनाती हैं ।

 
हरियाली तीज आते आते सावन आधे से ज्यादा बीत जाता है। ना तो अभी तक सावन की  घटाएं वैसे घिर कर आई हैं जैसे पहले घिरती थीं और ना ही सावन झूम कर बरसा है कम से कम दिल्ली में तो नहीं बरसा। दिल्ली में कहीं भी किसी पेड़ पर सावन के झूले भी पड़े नहीं दिखे। शायद इंसान के साथ साथ प्रकृति भी बदल रही है। सावन ही नहीं बरसता तो झूले कैसे ? 
            
 हमारे बचपन का सावन बरसता भी था और झूलों का आनंद भी अपार था। जहां हम रहते थे वो शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में बसी एक छोटी सी सुंदर जगह थी। प्रकृति की सुंदरता चारों और बिखरी हुई थी। घर के आस पास मज़बूत पेड़ थे । लेकिन सावन के झूले के लिए ज्यादातर नीम के पेड़ और शीशम के पेड़ पर सबकी नज़र रहती थी । सावन तो बाद में आता पहले चिंता रहती थी "टाणा मल्ल्कने " यानि पेड़ की मज़बूत और ऊंची शाखा पर कब्ज़ा करने की । आषाढ़ के महीने  में ही टाणे पर एक बोरी बांध कर हम लोग सुनिश्चित कर लेते थे कि बस अब तो इस पेड़ पर हमारा ही झूला डलेगा । आस पडोस में कम से कम हमारा पचास साठ बच्चों का समूह था । मज़बूत तने पर कब्जा करने के लिए सबसे ज्यादा मांग रहती मेरी बहन की, वो बहुत फुर्तीली थी बड़े से बड़े पेड़ पर बंदर की तरह चढ़ जाती और फिर उतर भी आती । वही सबकी बोरियां बांध कर आती और फिर झूले की रस्सी डालने के लिए भी मेरी बहन की चिरौरी करने बच्चे हमारे घर पहुंच जाते । झूले की रस्सी आम रस्सी जैसी नहीं होती थी रंगीन सतरंगी रस्सी और झूले में डलने वाली पटरी भी बहुत सुंदर नक्काशी दार होती थी । आषाढ़ की पूर्णिमा की शाम को झूले भी डाल दिए जाते । सब झूले मेरी बहन ही डालती । रस्सी लेकर पेड़ से चढ़ती और फिर झूला डाल कर पेड़ से नहीं रस्सी पकड़ कर ही उतर आती  और एक नियम था कि जो झूला डालेगा पहले नौ झूले उसे ही दिए जायेंगें । और फिर झूले में सुंदर सी पटरी लगा कर मेरी बहन को बैठाया जाता और नौ झूले दिये जाते । और फिर तो झूलों की बहार आ जाती ।और सबसे ज्यादा भीड़ रहती उस झूले पर जिस की पींग सबसे ऊंचा जाती । झूला बहुत ऊंचा जाए उसके लिए एक बहुत नायाब तरीका हम सबने खोज निकाला था । हम एक पतली मुलायम रस्सी लाते उसे झूले पर थोड़ा ऊंचा करके ऐसे बांधते की रस्सी दोनों तरफ आधी आधी रहे । इसे हम लश्कर कहते  थे ।रस्सी का एक हिस्सा एक बच्चा पकड़ता और दूसरी तरफ का दूसरा । और फिऱ जोर लगा कर झूला झूलाते धीरे धीरे झूला बहुत ऊंचा बढ़ जाता । इसमें बदमाशी की जितनी संभावनाएं होती वो बच्चे इस्तेमाल करते मसलन जब झूला बहुत उंचाई पर होता तो लश्कर को झटका दे देते जिससे झूले में झटका लगता और गिरने की संभावना बनी रहती । वैसे तो ये सिर्फ डरा कर मज़े  लेने के लिए किया जाता था लेकिन एक बार एक लड़की बहुत उंचाई से गिर गयी और उसकी नाक टूट गयी । चोट लग जाए ऐसा तो कोई नहीं चाहता था लेकिन उस दिन सबको दुख बहुत हुआ और जो डांट पड़ी उसका अंदाज़ तो आप लगा ही सकते हैं । सावन के दिनों में झूलों में हमारी जान बसती थी ।

स्कूल बिल्कुल पास था दूसरी घंटी बजने तक झूले झूलते, आधी छुट्टी में खाने के बजाए झूले में ज्यादा दिलचस्पी रहती. वो सब बच्चे भी आ जाते जो आस पास के गांवों और चंड़ी मंदिर कैंच से आया करते थे । समय कम और बच्चे ज्यादा इसलिए झूलों की, राशनिंग होती, तय कर लिया जाता एक बच्चा कितने झूले लेगा । लेकिन उस इंतज़ार का और फिर झूले के आनंद का जो मज़ा था उसे आज भी याद कर मन नाचने लगता है ।
                
दोहरा झूला डाल कर उसमें छोटी सी मंजी यानि खटोला भी डालते । उस पर चादर इस तरह से तानते कि वो घऱ जैसा बन जाता उसमें बैठ कर खाना खाते थे । सावन में चाहे हल्की फुहारे पड़ती या फिर तेज बारिश हम लोग झूले को मोह नहीं छोड़  पाते थे । सावन शुरू होने  से पहले ही सब नवविवाहित लड़कियां ससुराल से अपने मायके लौट आतीं । और नवविवाहित बहुएं अपने मायके चली जातीं ।

कहा जाता पहला सावन ससुराल में नहीं बीतना  चाहिए । लेकिन अब जब अपनी संस्कृति के बारे में जानने समझ ने की कोशिस कर रही हूं तो पता चला  है कि सावन में ससुराल में ना रहने की कोई धार्मिक  वजह नहीं थी बल्कि ये पति पत्नी की सेहत से जुड़ा गंभीर मसला था । हमारी परंपरा में सावन के महीने में पुरूषों को ब्रह्मचर्य के पालन की अनिवार्यता थी, क्योंकि सावन के महीने में पुरूषों को अपने वीर्य का सरंक्षण करना चाहिए आयुर्वेद तो यही कहता है । इस महीने में गर्भ ना ठहरे, इसका पूरा प्रयास रहता था, क्योंकि इस महीने में ठहरे गर्भ से पैदा हुए बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत बलवान नहीं होते । इसलिए पत्नी को पति से दूर रखने का अच्छा तरीका था कि मायके भेज दो लेकिन आज शायद ये संभव नहीं हो पायेगा .। पति पत्नी दोनों कामकाजी और उपर से न्यूक्लीयर फैमिली ।

हमारे यहां बड़ा बाज़ार नहीं था लेकिन बहुत विश्वस्त फेरी वाले चक्कर काटने शुरू कर देते थे । चूड़ी , श्रृंगार का सामान , कपड़े साड़ियां , जरी गोटा, यहां तक कि सोने -चांदी के गहने वाला भी । महिलाओं के साथ इनकी गजब  की आत्मीयता होती । सामान किश्तों में खरीदा जाता था । उन्हें  सबकी आवश्यकताएं पता होती, किसको बहू का सिधारा भेजना है, किसको बेटी की ससुराल  से  सिंधारा लाने वालों को तोहफे देने हैं । यानि ना खाता ना बही बस जुबान का भरोसा ।  और आज की भाषा में कहें तो मोबाइल शॉप । इन के साथ रिश्ता केवल खरीद फ़रोख्त तक ही सीमित नहीं था, सुख दुख के गहरे नाते भी थे । हम तो बच्चे थे लेकिन देखते थे कि सब महिलाओं से दुकानदार दुनियादारी की बाते करते  खाते पीते    । कपड़े लाने वाले का नाम सरना था, सुनार भोला था । जब .ये लोग आते तो महिलाओं के साथ साथ हम भी कौतुहल वश इन्हें घेर कर खड़े हो जाते   । लड़कियों के नाक कान भी भोला ही बिंधता था । लो जी ज्यादातर  शॉपिंग   तो घर बैठे ही हो जाया करती थी । 
सावन के महीने में मिठाइयां विशेष,कर घेवर खूब खाने को । नवविवाहिताओं के ससुराल से सिंधारा आता तो शान से सबको दिखाया जाता आस पड़ोस के गली मौहल्ले के सब लोग सिंधारा देखने आते, और साथ ही वो सामान भी सजा दिया जाता था, जो ससुराल वालों के लड़की वाले देते क्योंकि लड़की की ससुराल से जितना आया उसका दोगुना तो वापस करना ही होता था । और फिर जो मिठाई और फल सिंधारे में आए होते उन्हें पूरे पड़ोस में बांटा जाता । इस तरह की संस्कृति दिल्ली के पॉश इलाकों में देखने को नहीं मिलती । किसी को किसी से बात करने की फुरसत ही नहीं और अगर हो भी तो इगो आड़े आ जाती है ।

 तीज से पहले नए कपड़े सिल जाते क्योंकि ये लडकियों का त्यौहार है । चुन्नियों में गोटे लगाए जाते । और फिर तीज की एक रात पहले मेंहदी लगायी जाती । मेरी बीजी हम दोनों बहनों को बड़े चाव से मेंहदी लगातीं । उन्हें आजकल जैसी मेंहदीं नहीं लगानी आती थी जिसे हम उस समय राजस्थानी मेंहदी कहते थे । वो मुठ्टी की मेंहदी लगा कर हमारे दोनों हाथ कस कर एक कपड़े से बांध देतीं और फिर सुबह ही हाथ खोले जाते । हम सब लड़कियां सबसे पहले उठ कर एक दूसरे से ये पूछने भागते थे  कि किसकी मेंहदी कैसी रची, . किसका रंग कैसा आया । हम लोगों का विश्वास था कि जिसकी मेंहदी सबसे गाढ़ी रचेगी उसकी सास उसे सबसे ज्यादा प्यार करेगी । बचपन का भोलापन तो देखिए जिस लड़की की मेंहदीं का रंग हल्का होता था, वो सचमुच निराश हो जाती ये सोच कर कि उसकी सास तो उसे प्यार ही नहीं करेगी ।
                                         
तीज वाले दिन स्कूल जाने का तो सवाल ही नहीं , स्कूल से छुट्टी, सज धज कर हम पहुंच जाते अपने झूलों पर और हमारी बीजी उस दिन दस ग्यारह बजे तक किचन में व्यस्त रहती पक्का खाना बनता । खीर , पूड़ी , तीन चार तरह की सब्जियां अपने लिए ही नहीं आस पड़ोस के लिए भी । सबके घर भी थाल सजा कर मेरी बीजी भेजती  ।
                                            
घर के काम काज से निपट कर फिर महिलाएं आ जातीं झूला झूलने सब सजी धजी और क्या सुंदर गीत गातीं । उनमें से एक मुझे याद है -- कच्चे नीम के निंबोली लागी सावनियां कब आवेंगें , दादा दूर मत ब्याहाइयो दादी नहीं बुलाने की , ये उस समय का बना गीत होगा  जब यातायात के साधन बहुत अच्छे नहीं थे, ये कुंवारी लड़की की चिंता है औऱ दादा से अनुरोध है कि मेरी शादी बहुत दूर मत कर देना । लेकिन दादा अपनी पोती को विश्वास दिलाता है, रेल की सवारी झट बुला लूंगा ।
 
नाच गाना झूला मस्ती खाना पीना और तीज बीत जाती फिर इंतजार शुरू हो जाता अगले साल की तीज का । मेरी बीजी बताती हैं कि उनकी तीज हमसे अलग होती थी । वो और उनकी सहेलियां उस दिन गौरां की शादी करती, बारात निकालती, भगवान को भी झूले झुलातीं और वो बताती है कि उनके गांव में मनियार और बजाजी महीनों पहले डेरा डाल लेते थे । मनियार यानि चूड़ी वाला और बजाजी यानि कपड़े वाला । हमारी मां के समय से हमारे वक्त की तीज बदली औऱ अब तो तीज का रूप रंग बड़े शहरों में बदलता जा रहा है । छोटे  परंपरागत शहरों में तो अब भी तीज की पुरानी रंगत दिखती है लेकिन दिल्ली में तो तीज मेलों तक ही सिमटी दिख रही है । 

 

रविवार, जून 19

ज्योतिष का पीपली लाइव...सर्जना शर्मा



एक टीवी चैनल पर एक ज्योतिषी जी भगवा चोगा पहन कर, गले में एक मोटी सी सफेद माला डाल कर चश्मा लगाए बैठे थे । दर्शकों से सीधे फोन इन चल रहे थे । बहुत ही फनी से लग रहे थे, जिस दर्शक से उनकी बात चल रही थी आप भी सुनिए --

---- पंड़ित जी मेरा व्यापार ठीक नहीं चल रहा क्या करूं ?

---- तुम्हारी सबसे बड़ी बहन होगी ?

--- नहीं पंड़ित जी मेरे दो बड़े भाई फिर मैं और फिर मेरी एक बहन...

---- अच्छा तुम्हारी बहन को एलर्जी रहती  होगी ?

-- नहीं तो कभी नहीं रही...

---- फिर तु्म्हें बहुत एलर्जी रहती होगी

---- नहीं मुझे तो कोई एलर्जी नहीं है...

--- पंड़ित जी के सभी अनुमान गलत लेकिन खिसियाए से पंड़ित जी बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाते रहे...

--- अच्छा तुम अपने घर के जिस कमरे में रहते हो वो बदल लो, दूसरी मंज़िल पर रहते हो...

---- नहीं हमारा  घर तिमंजिला है मैं तीसरी मंज़िल पर रहता हूं...

--- दर्शक से सीधे लाइव वार्तालाप चल रहा है और पंड़ित ती अपनी सड़क छाप भाषा में बात करते जा रहे थे...

-----अच्छा तो तुमने कभी  किसी से प्यार किया है....

--- नहीं पंड़ितजी किसी से नहीं किया.. 

--- अब पंड़ित जी के चेहरे पर एक विचित्र सी मुस्कान आयी और एंकर से मुखातिब हो कर बोले-

- लो कैसा बंदा है बंदे ने कभी प्यार ही नहीं किया... 
--- अरे  भाई जीवन में प्रेम नहीं तो फिर क्या कुछ भी नहीं... 
 फिर उन्होने दर्शक को कुछ नुस्खे बताए कि कौन से ग्रह के लिए क्या करो...

और इन पंडित जी के अपने इतने उच्चारण दोष हैं कि आप सुन कर हंसते हंसते लोट पोट हो जायेंगें, मनोरंजन के लिए ऐसे प्रोग्राम देखे जा सकते हैं लेकिन देख कर दुख होता है कि एक प्राचीन विद्या को कैसे हल्के में लिया जाता है और भोले भाले दर्शकों से खिलवाड़ किया जाता है ।

एक और चैनल पर एक तथाकथित पंड़ित जी आते है -- मूल रूप से वो मुस्लिम हैं, लेकिन उन्होने अपना नाम बदल रखा है और धार्मिक चैनलों पर समय खरीद रखा है क्योंकि इन लोगों के पास इतना पैसा होता है जो ये लोगों से पूजा पाठ तंत्र मंत्र के नाम पर वसूलते रहते हैं ।
चैनल सर्फिंग में एक दिन देखा  ये जनाब भी  दर्शकों से सीधे वातार्लाप कर रहे थे एक लड़की लाईन पर थी....

----- पंड़ित जी नमस्कार...
--  नमस्कार.... आंखें बद किए हुए पंड़ित जी ने उत्तर दिया....

----- मेरी शादी नहीं हो रही है 21 साल की हो गयी हूं ...

---- अच्छा शादी नहीं हुई कोई बातनहीं मैं करवाऊंगा तुम्हारी शादी बस तुम मेरे बताए उपाय करना और फिर देखना कैसे महीने भर में दुल्हन बन जाओगी...
 
---- अब लड़की का गला रूंध गया लगभग रोते रोते उसने कहा -- मैं और मेरे घरवाले तो परेशान हो चुके हैं बस अब आपका ही सहारा है ...
--  उस बाबा ने लड़की को कई उपाय बताए जो मुझे याद नहीं लेकिन एक जो इंस्टेंट   उपाय बताया वो सुनिए...

--- बेटी तुम एक काम कर सकती है अगर ये तुमने कर लिया तो समझ लो बस 15 दिन में शादी पक्की...

---- हां बताओ  ना बाबा जी मैं ज़रूर करूंगी, कुछ भी कर लूंगी....

---- अपनी किसी शादीशुदा सहेली के घर जाओ उससे उसका शादी का जोड़ा एक दो दिन के लिए मांग लाओ उसे घर ला कर पहनो,
और साथ ही उन्होनें कुछ पूजा पाठ और मंत्र भी बताए
 
बाबा जी भी  ये अच्छी तरह से जानते हैं कि कोई भी महिला अपनी शादी का जोड़ा किसी को नहीं देगी और लड़की ये उपाय कर नहीं पायेगी....

 इन बाबा जी का माया जाल दूर दूर तक फैला है तीन सवालों के दस हज़ार रूपए लेते हैं बहुत से लोग इनके जाल में फंसते हैं । पैसा एडवांस जमा कराते हैं अगर कभी सामने वाला तगड़ा मिल जाए जैसा कि एक बार इन्हें मिला । वो मुंबई का रहने वाला था उसने किसी तरह हमसे संपर्क किया और कईं  संपर्कों  से होते हुए जब बाबा जी तक बात पहुंची तो मौके की नज़ाकत को भांपते हुए उन्होनें ना केवल दस हज़ार रूपए लौटाए बल्कि अपनी सफाई पेश की और मुफ्त ज्योतिषीय सलाह देने को राजी हो गए क्योंकि वो अच्छे से जानते थे कि इस मामले में उन्हें लेने के देने पड़ सकते हैं और दुकान भी  बंद हो सकती है ।
                                       
आज हर चैनल पर कपूर तनेजा मित्तल , सिन्हा , श्रीवास्तव , आदि आदि भिन्न प्रकार के पंड़ित आपको मिलेंगें और तमाम तरह के नुस्खे  सुझायेंगें कुछ तो ये भी बताते हैं कि पति को वश में करने के लिए क्या किया जाए । हर न्यूज़ चैनल में आजकल खबरों से ज्यादा ज्योतिष , वास्तु आदि के शो हैं । और कुछ तो बाकायदा ज्योतिषियों और तर्कशास्त्रियों में भिडंत भी  करवा देते हैं ।
           
ज्योतिष के कुछ नियम है जिनका पालन करना ज्योतिषी के लिए बहुत आवश्यक होता है । और ज्योतिष ऐसी विद्या भी नहीं है कि एक सवाल पूछते ही तुरंत उसका उत्तर हाज़िर है...गणना करने में भी  समय लगता है कुंडली की विवेचना में भी समय लगता है । लेकिन फिर भी लोग ना जाने क्यों इन ऑन लाईन   पंड़ितो से सवाल पूछते रहते हैं और इनके हाथों बेवकूफ बनते रहते हैं । दुख की बात तो ये हैं कि जिनके कंधे पर समाज में जागृति लाने की ज़िम्मेदारी है वही इन्हे प्रमोट कर रहे हैं । ज्योतिष को ईश्वर के चक्षु कहा गया है और हमारे संतों ऋषि मुनियों ने इस विधा पर बहुत काम करके ग्रंथों की रचना की है  लेकिन आज उसका सदुपयोग कम और दुरूपयोग ज्यादा हो रहा है,  शायद ही इनमें से कोई प्राचीन ज्योतीषीय ग्रंथों को पढ़ता  होगा  ।            
          
 

शुक्रवार, जून 3

अलविदा सलीम शहजाद, तुम्हारे जज़्बे को सलाम...सर्जना शर्मा


लापता पाकिस्तानी पत्रकार सलीम शहजाद की लाश गाड़ी में मिली। सभी टीवी चैनलों पर जब मैनें ये खबर देखी तो सकते में आ गयी। सलीम शहजाद से पिछले लगभग दो साल से ई-मेल के जरिए संपर्क बना हुआ था। सलीम शहजाद से मेरा सपंर्क उस समय हुआ जब नेट पर मैं तालिबान से संबंधित सामग्री की खोज कर रही थी। गहरी जानकारी, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में घटनाओं का विश्लेषण संबंधित सलीम का एक लेख पढ़ा और नीचे लेखक का नाम और ई मेल लिखा मिला तो उन्हें एक मेल डाली और उसका तुरंत जवाब भी आया। फिर सलीम लगातार अपने लेखों का लिंक भेजने लगे। और उनके लेख कभी कभी तो किसी ज्योतिषी की भविष्यवाणी जैसे लगते। सलीम जब लिखते कि अब इस घटना का पाकिस्तान या अफगानिस्तान में ये असर होगा तो थोड़े दिन बाद देखने को मिलता कि ऐसा ही हो रहा है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के घटना क्रम पर सलीम शहजाद ने कई बार हमारे चैनल के लिए फोन इन भी दिए ।
सलीम से कई बार फोन पर भी बात होती। बातचीत में बहुत संजीदा और तमीज़याफ्ता । सलीम की आतंकवादी गुटों, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के घटनाक्रम और अमेरिकी नीतियों पर गहरी पकड़ थी। आतंकवादी संगठनों  की पूरी जानकारी भी सलीम के पास रहती थी। सलीम कई विदेशी अखबारों में नियमित रूप से लिखते थे। और उनके लेखों को गंभीरता से लिया जाता था । सलीम सचमुच अपनी जान हथेली पर रख कर काम कर रहे थे । मई के महीने में ही सलीम ने मुझे एक मेल भेजी थी जिसमें उन्होने अपनी आने वाली किताब --- inside alqada and the taliban, beyond bin-laden and 9/11 के बारे में जानकारी भेजी थी। सलीम ने लिखा था कि इस किताब में 2002 से लेकर 2006 तक की उन सभी घटनाओं का ब्यौरा है जिनके कारण अल कायदा और तालिबान की वापसी हुई। और तो और सलीम शहजाद ने अपनी इस किताब में ये खुलासा भी किया है कि मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले का असली मास्टर मांइड कौन था और उसी ने किस तरह से अफगानिस्तान के वॉर थियेटर के आयाम बदल दिए । ज़ाहिर सी बात है इसमें वो सब कड़वे सच होंगें जिन्हें पाकिस्तान सरकार कभी पसंद नहीं करेगी। नेवी बेस पर हुए हमले की सच्चाई का खुलासा भी सलीम शहजाद  ने किया जो उनकी हत्या का कारण भी बना। सलीम शहजाद की वो किताब जिसका विमोचन 20 मई को हुआ था, आप उसे गूगल डॉट कॉम पर जाकर plutobooks.com पर देख सकते हैं और खरीद भी सकते हैं । सलीम शहजाद का अपना ब्लॉग भी था-http:/www.syedsaleemshahzad.com
उनके लेख पढ़ कर ही उनकी पैनी कलम का अहसास होता है और पता चलता है कि वो एक खोजी, निडर और बहादुर पत्रकार थे। ऐसे पत्रकार की हत्या से पाकिस्तान के अंदरूनी हालात और सरकार के रैवेये की पोल खुलती है । सलीम की हत्या की खबर से बहुत दु:ख हुआ। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे। मेरी तरफ से उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि।

मंगलवार, मई 24

पानी पानी रे...बिन पानी सब सून


सर्जना शर्मा
भयंकर गर्मी का महीना जयेष्ठ चल रहा है। इस महीने की गर्मी शरीर के लिए बहुत घातक हो सकती है अगर हम अपना ठीक से ध्यान ना रखें तो । भारत पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जिसमें 6 ऋतुएं हैं। हमारे सारे त्यौहार, पर्व ऋतुओं के अनुकूल ही है । इस महीने में सबसे ज्यादा महिमा जल की है। सूर्य की तेज़ किरणों में धरती के साथ साथ मनुष्य के शरीर के भीतर का जल भी सूखने लगता है। और हमारे ऋषि मुनियों ने इस महीने में जल के सरंक्षण को धर्म से जोड़ा ।  हमारा परंपरागत समाज  पूर्वजों के  बनाए नियमों का पालन भी करता है । आधुनिक लोग भले ही अपने स्वार्थ के दायरे में बंधे रहते हों लेकिन हमने अपने बचपन में देखा कि हमारे पड़ोस की बहुत सी महिलाएं जयेष्ठ के महीने में नंगें पांव रहने और जल ना पीने का व्रत लेती थीं । स्वयं भले ही ना पीएं लेकिन दूसरों के लिए शर्बत बना कर देना , राहगीरों के लिए ज़मीन खोद कर घड़े ऱखना और फिर उसमें स्वयं जल भरने जाना वो भी दिन में दो या तीन बार । हम छोटे थे तो हम चाव चाव से उनके साथ जाते और घड़े पानी के भर कर आते । सूर्य की तपन को अपने पांवों तले महसूस करना और स्वयं प्यासे रह कर ये अनुभव करना कि अगर पानी ना मिले तो क्या हालत होती है ।हमारी संस्कृति की एक ऐसी सोच है जो तप और संयम से दूसरों के लिए जीना सीखाती है । जल की महिमा का बखान हमारे वेदों और पुराणों में है । आज पश्चिमी देश --' सेव वॉटर यानि पानी बचाओ ' का ज्ञान हमें दे रहे हैं लेकिन हमारे पूर्वजों ने  हज़ारों वर्ष पहले लिखा --" जल को दूषित करने वाला नरक में जाता है " । पाप,और पुण्य  , स्वर्ग और नरक  भारतीय जनमानस. में गहरे पैठे रहते हैं ।भले ही नरक और पाप  के डर से  ही सही हमारे पूर्वज जल को स्वच्छ तो रखते थे । अथर्ववेद में जल पर सबसे ज्यादा श्लोक हैं जिनमें जल को जीवन का अमृत और भेषज यानि औषधि माना गया है । जल के दान को महादान बताया गया है । अगर आप अपने व्रत त्यौहारों पर ध्यान से विशलेषण करें तो आप पायेंगें कि सभी त्यौहार और व्रत मौसम से जुड़े हैं । तपती गर्मी में हम शीतल जल , शर्बत पीते हैं सत्तू , खीरा ककड़ी तरबूज और खरबूज खाते हैं ।और आप देखेंगें कि निर्जला एकादशी जो इसी महीने में पड़ती है (इस साल 12 जून को है  ) हम जल से भरा घड़ा , पखां , शरबत की बोतल , खरबूजा , ककड़ी , सत्तू , छतरी और जूते का दान करते हैं । ये वही सब वस्तुएं हैं जिनका हम गर्मियों में बहुत इस्तेमाल करते हैं औऱ इन्ही का हम दान भी करते हैं । यानि सीधा सा गणित है दूसरों की भी मदद करो जिनके पास इन सब वस्तुओं का अभाव है उन्हें दान करो । प्याऊ लगवाना ,पशु , पक्षियों के लिए जल की व्यवस्था करना धर्म माना गया है । इससे कितना पुण्य मिलता है इसका फैसला तो चित्रगुप्त ही करेंगें लेकिन ये तय है कि हमारी संस्कृति में सह अस्तित्व का बहुत महत्व है । इस भयंकर गर्मी में पशु पक्षियों को भी तो पानी चाहिए औऱ हम मनुष्यों को धर्म के माध्यम से ये सीखाया गया कि उनका भी ध्यान रखो ।
                                                                            गर्मी के महीने में गर्मी पड़ना भी बहुत आवश्यक है । अगर जेठ नहीं तपेगा तो सावन नहीं बरसेगा , और सावन नहीं बरसेगा तो किसानों को बहुत नुकसान होगा , फसल का नुकसान होगा और आखिर में हम सबको इसका नुकसान उठाना पड़ेगा । प्रकृति बहुत उदार और विशाल है उसके मौसमी फल भी हमारे शरीर को फायदा पहुंचाते हैं । इस मौसम के सभी  फलों और सब्जियों में पानी की मात्रा बहुत ज्यादा होती है । खीरा विटामिन ए , पोटेशियम से भरपूर होता है तो खरबूजा  पोटेशियम और विटामिन सी से भरपूर होता है । खीरा , ककड़ी तरबूज और खरबूजा शरीर को खनिज लवण देते हैं । ये फल खाने से लू नहीं लगती ।
                 इस मौसम में शरीर में पित्त उभरता है . गर्मी लगती है और प्यास भी लगती है ।  हमारे परंपरागत ठंडे पेय में शिकजंवी , आम का पाना , इमली का पाना , सत्तू और छाछ  पीया जाता था । जो शरीर को बाहरी नहीं भीतरी शीतलता देते थे । पोषक आहार विशेषज्ञ अरूण कुमार पानी बाबा  कहते हैं कि शिकजंवी में मिल की बनी चीनी ना डाल कर देसीतरीके से बना बूरा मिलाना चाहिए । और उसमें त्रिकटू ज़रूर डालना चाहिए । त्रिकटू काली मिर्च , सौंठ और पीपल को बराबर मात्रा में मिला कर कूट कर बनाया जाता है । अरूण जी कहते हैं त्रिकटू को फलों की चाट में , रायते में सबमें मिलाएं तो वात , कफ और पित्त तीनों संतुलित रहते हैं । और त्रिकटू 12 महीने प्रयोग किया जा सकता है । कच्चे आम , प्याज पुदीने और हरी मिर्च की चटनी भी इस मौसम में वरदान मानी गयी है । जो लोग प्याज नहीं खाते वो बिना प्याज़ के भी ये चटनी बना सकते हैं ।
               ज्योतिष शास्त्र में भी इस महीने की अनोखी व्याख्या है । हमारे परिचित ज्योतिषाचार्य अशोक कुमार जी ने जल और ज्योतिष विषय पर गहन अध्ययन किया है  ।उन्होने जल और मनुष्य के ज्योतिषय संबंध का अद्भुत विश्लेषण किया है । भारतीय महीनों के नाम नक्षत्रों के हिसाब से रखे गए हैं । जयेष्ठ मास की पूर्णिमा को चंद्रमा जयेष्ठा नक्षत्र में होता है । इस नक्षत्र का स्वामी बुध है जो दूसरों के कष्ट की अनुभूति कराता है ।  ये महीना जब आरंभ होता है तो चंद्रमा वृश्चिक राशि में होता है वृश्चिक भी जल की राशि है और इस महीने के सभी त्यौहार जल से जुड़े हैं . निर्जला एकादशी , गंगा दशहरा और भगवान जगन्नाथ की स्नान पूर्णिमा । और इसी महीने में भगवान जगन्नाथ की चंदन यात्रा और नौका विहार होता है ।इस नक्षत्र के देवता इंद्र है जो वर्षा के देवता है । यहां इंद्र , इंद्रियों के शमन का प्रतीक है और जप तप का संदेश देते हैं ।
                                चंद्रमा को मन का स्वामी माना गया है । चंद्रमा की घटती बढ़ती किरणों का प्रभाव मनुष्य के शरीर पर पड़ता है ।मनुष्य के शरीर में भी 72 फीसदी जल है । पृथ्वी का अधिकतर भाग भी जल से भरा है । वृश्चिक राशि में चंद्रमा नीच का माना जाता है औऱ इसकी नीचता को शुभता में बदलने के लिए जल के दान का विधान रखा गया है । आप जल जितना दान करेंगें चंद्रमा उतना ही शुभ होगा और मन भी प्रसन्न रहेगा । मन ठीक होगा तो शरीर भी प्रसन्न रहेगा । प्रसन्न रहने पर तन मन में उर्जा और उत्साह का संचार रहता है . उत्साह और उर्जा से सकारात्मक सोच बनती है । अशोक जी का मानना है इससे बुध ग्रह शुभ हो जाता है । अच्छी बुद्धि होने पर इंसान कर्म भी  अच्छे ही करता है यानि शनिदेव शुभ हो गए । अच्छे कर्मों से कामनाएं पूर्ण होती हैं और सुख की अनुभूति होती है अर्थात शुक्र शुभ हो गया । और अच्छे रास्ते से धन कमाने वालों का मन फिर आध्यात्म और भक्ति की और मुड़ता है । यानि देवगुरू बृहस्पति शुभ हो गए । . भक्ति मार्ग में रूकावटें डालने वाला राहू भी जब मनुष्य की सरलता और निष्कपटता देखता है तो वो अनूकूल हो जाता है । धर्म अर्थ और काम के बाद शेष बचता है मोक्ष केतु मोक्ष देने वाला ग्रह माना गया है और वही मोक्ष की राह पर चलने की बुद्धि देता है । यानि जल का  और संरक्षण मनुष्य का जीवन ही बदल देते हैं । इसलिए तपती गर्मी में जन कल्याण , धरती के अन्य प्राणियों के कल्याण और अपने कल्याण के लिए जल को शुद्ध रखो , संरक्षण करो , नदियों सरोवरों की पवित्रता बनाए रखो और जितना हो सके जल का दान करो । उतना ही पानी इस्तेमाल करें जितना ज़रूरी है बर्बाद ना करें । निर्जला एकादशी को निर्जल व्रत रखने के पीछे भी यही सोच रही होगी कि जल का सरंक्षण करो अपने लिए भी और धरती के सभी प्राणियों के लिए भी । अपने घर के आसपास पानी के घड़े रखें , पशु पक्षियों के लिए पीने का पानी  रखें । आप अगर पाप पुण्य में  बी  विश्वास नहीं रखते तो नेक काम करके आपके दिल को शांति तो अवश्य मिलेगी ।  

शनिवार, मई 21

सपनो के खौफ में जिंदगी की जीत

 सर्जना शर्मा

 सपनों की रहस्यमयी दुनिया पर पिछली पोस्ट में मैनें लिखा था कि सपने कैसे अनहोनी का संकेत दे जाते हैं लेकिन हम उन्हें केवल सपना मान कर भूल जाते हैं और जब कुछ दिन या महीनों के बाद सपना सच होता है तो हम सोचते हैं अरे इस घटना के बारे में तो मुझे पहले ही सपना आ गया था । पिछली पोस्ट में मैनें दो ऐसी घटनाओं का ज़िक्र किया था आज एक और सच्ची घटना ----

                              1998 की बात है गर्मियों के दिनों में मुझे एक सपना आया कि मेरी बहन का बड़ा  बेटा मेरे हाथ से छूट कर एक नदी में बह गया है मैं उसे पकड़ने की कोशिश करती रही लेकिन वो नदी के बहाव के साथ बहता गया । मेरी नज़र उसी पर रही और कोशिश भी कि किसी तरह उसे नदी से निकाल लूं . मैं दूसरी तरफ से घूम कर नदी के किनारे गयी और तब तक मेरा भांजा भी वहां पहुंच गया और मैं उसे नदी के निकाल कर ले आयी और वो बिल्कुल ठीक ठाक था . सुबह उठ कर मैनें घर में सबको ये सपना बताया और मेरे पापा और बीजी और हम सबने फैसला किया कि बच्चों को नदी या तालाब के पास लेकर नहीं जाना है। बचाव रखना है। तीन चार महीने बीत गए हमारे मन से भी सपने का खौफ कम हो गया।

                                 दिसंबर में क्रिसमिस की छुट्टियों में   मेरी बहन  अपने दोनों बेटों के साथ अपने पति के पास पंजाब चली गयी ।  उन दिनों  मेरी बहन के पति की अबोहर के पास गोविंदगढ़ में पोस्टिंग थी । आबादी से दूर आर्मी  का ये इलाका भाखड़ा बांध से आने  वाली इंदिरा गांधी कैनाल के पास था।  बच्चों के लिए ऐसी जगहों में खेलने कूदने और मस्ती करने के भरपूर अवसर रहते हैं। मेरी बहन के अलावा के और अफसरों के बच्चे भी  वहां  थे और सब मिल कर खूब धमाचौकड़ी करते। एक दिन चार बच्चे ,मेरी बहन का बड़ा बेटा कार्तिकेय कमांडिंग ऑफिसर का बेटा अर्जुन वेणुगोपाल और दो अन्य आर्मी अफसरों के बच्चे बिना किसी को बताए नहर के किनारे खेलने चले गए। लंच का समय था अर्जुन को उनका सहायक आ कर ले गया। अब एक बच्चे के मन में ना जाने क्या आया कि उसने कार्तिकेय को नहर में धक्का दे दिया। सभी बच्चों की उम्र पांच छह साल के आसपास थी। नहर लगभग 12 फीट गहरी है और पानी का बहाव बहुत तेज़। धक्का देने के बाद वो आवाज़े लगता रहा लेकिन कार्तिकेय तब तक डूबने लगा था और उस बच्चे  दिखाई देना बंद हो गया। तब वो परेशान हुआ और भागकर अर्जुन और उनके सहायक को वापस बुला कर लाया। लेकिन कार्तिकेय ना आवाज़ का जवाब दे रहा था और ना ही नज़र  आ रहा था। अर्जुन के सहायक ने और बच्चों ने मिल कर शोर मचाया। इतने में मेरे जीजा जी की युनिट  का एक और जवान वहीं से गुज़र रहा था।  उसे जब बात पता चला तो वो झट से नहर में कूद गया वो अच्छा तैराक माना जाता था , लेकिन उसे कार्तिकेय मिला ही नहीं उल्टे वो भी  तेज़ धारा में बहने लगा । इतने में कुछ और जवान इक्ट्ठे हो गए ।  मेरे जीजा की युनिट  सिखों की है सब लोग पगड़ी पहनते हैं नहर के किनारे खड़े एक जवान ने अपनी पगड़ी खोल कर नहर में कूदे जवान की तरफ फैंकी और एक सिरा स्वयं पकड़े रखा । लगभग डेढ़ किलोमीटर जाने के बाद उस जवान को कार्तिकेय मिल गया और अपनी पीठ पर लाद कर वो उसे बाहर लाया । सबसे पहले तो सेना की ट्रेनिंग के अनुसार उसने कार्तिकेय को उल्टा करके पेट से पानी निकाला । और फिर उसे गोद में लिए लिए ही मेरी बहन के पास लाया । तब को बहुत सारे जवान बच्चे और महिलाएं जुट गए थे । मेरी बहन ने शोर सुना और थोड़ी हैरान भी कि इतने लोग एक साथ हमारे घर की तरफ क्यों आ  रहे हैं । जब उन्होने कार्तिकेय को लाकर लिटाया और पूरी बात सुनाई तो मेरी बहन सुन्न रह गयी । सर्दियों के दिन इतने सारे कपड़े जूते स्वेटर पहले बच्चा कुछ भी  हो सकता था । लेकिन कार्तिकेय अविचलित था । ना डरा ना उसके चेहरे पर हादसे की घबराहट ।
           खैर मेरी बहन और उसके पति के मन पर उस समय क्या बीती होगी कोई भी  अनुमान लगा सकता है । बचाने वाले  जवान को उसकी बहादुरी के लिए पुरस्कृत किया गया।
                                                                   मेरी बहन और उसके पति ने हमें दिल्ली में इस बारे में कोई खबर नहीं दी। जब वो जनवरी में लौटी तो उसने पूरी किस्सा सुनाया । घर में वातावरण बहुत भावुक हो गया ।  भगवान को हमने कोटि कोटि धन्यवाद दिया  की उसकी  अपार कृपा  से हमारा बच्चे सिर से अनहोनी टल गयी । मैनें उससे पूछा -- तुम्हे डर नहीं लगा पानी में ? उसने हमें जो उत्तर दिया उसे सुन कर हम तो हतप्रभ रह गए. उसने कहा ---" बिल्कुल नहीं मम्मी मेरे साथ भगवान थे । उन्होने मुझे डरने ही नहीं दिया पकड़े रखा "। पांच साल के बच्चे से ऐसे उत्तर की अपेक्षा हमें  नहीं थी । लेकिन भगवान के प्रति मेरी आस्था और गहरी  हो गयी ।
                                                                                                    और चार महीने पहले आया सपना सच हो गया । मेरी बहन ने बताया कि उस दिन कार्तिकेय ने -- इस्कॉन में मिलने वाली टी शर्ट पहली हुई थी -- जिस पर भगवान कृष्ण बने थे और लिखा था -- आई लोस्ट माई हार्ट इन वृंदावन ।

                                                 ये तो मेरे अपने बच्चे से जुड़े सपने हैं । सत्तर के दशक में मुझे एक दिन अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी सपने में आए । अमिताभ बच्चन ने  मुझ से कहा कि मेरी तबियत खराब रहती है हम अब दिल्ली रहने आ रहे हैं । मुझे लगा कि आजकल अमिताभ हिट हैं उनकी फिल्में देखते रहते हैं इसलिए ऐसा सपना आया । लेकिन कुछ दिन बाद ही अखबारों की सुर्खियां बनी कि अमिताभ को अस्थमा, मुंबई से दिल्ली शिफ्ट हो रहे हैं ।और फिर वो कुछ  अरसे तक अपने गुलमोहर वाले घर में दिल्ली रहे । सपने संदेश देते हैं आने वाले समय के बारे में बताते हैं इसका मुझे पूरा विश्वास है। मैनें तो आजतक ना जाने कितने ऐसे  अनुभव किए हैं ।

सोमवार, मई 16

ईश्वर की छाया में आगाह करती सपनों की दुनिया


  एक महीना दस दिन के लंबे अंतराल के बाद आज मैं पोस्ट लिख रही हूं । ये पोस्ट पढ़ कर आप सब जान जायेंगें कि मैं इतने दिन ब्लॉगिंग से दूर क्यों रही । पिछली पोस्ट पांच अप्रैल को लिखी थी जिस पर आपकी बहुत प्रतिक्रियाएं आयीं लेकिन मैं आप को धन्यवाद भी नहीं दे पायी । आशा है आप सब मुझे भूलें  नहीं होंगें । आपके साथ स्नेह की डोर पक्की है । आप जब ये पोस्ट पढ़ेंगें तो मेरी मजबूरी समझ ही लेंगें । आपकी प्रतिक्रियाएं मुझे यकीन करायेंगी कि मैं अब भी अपने प्यारे से ब्लॉग परिवार की सदस्य हूं --सर्जना शर्मा  


 पिछले महीने नौ अप्रैल को मेरी बड़ी बहन सरीखी सहेली मधु जोशी का फोन आया । मधु बहुत मस्तमौला किस्म की हैं . दिल की बहुत  अच्छी दोस्तों की दोस्त ना किसी से ईष्या ना किसी से द्वेष , कभी मेरा मन किसी बात को लेकर बहुत परेशान होता है तो मधु से ही बात करती हूं और फिर वो ऐसा समझाती हैं कि मन शांत हो जाता है । कहती हैं समय आने पर सब अपनी गति को प्राप्त हो जाते हैं तुम नाहक परेशान मत हुआ करो । और फिर साथ ही मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए कहती हैं --" हम जैसे सीधे सच्चे लोग दुनिया में बहुत कम है . इसलिए लोगों की चालाकियां और दुष्टताएं हमारे दिल को चोट पहुंचाती हैं । लेकिन हम हम रहेंगें और वो वो ही रहेंगें । बस मस्त रहो " । लेकिन उस दिन जब मधु का फोन आया तो उन्होनें सबसे पहला सवाल दागा--- तुम ठीक  तो हो ना ?
 
हां मैं बिल्कुल मस्त और फिट हूं ।
 
नहीं सच बताओ कोई परेशानी तो नहीं, तबियत तो ठीक है ?
 
मधु की आवाज़ में झलकती चिंता और बार बार पूछते रहने पर मुझे हैरानी हुई । हां लेकिन तुम बार बार क्यों ऐसा पूछ रही हो ?
 
"कल रात मुझे सपना आया कि एक भयंकर कुत्ता तुम्हारे उपर झपट रहा है और मैं उसे भगा रही हूं लेकिन वो तुम्हारा पीछा ही नहीं छोड़ रहा है । मुझे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही है अपना ख्याल रखना " ।
 
मधु मुझसे बहुत स्नेह रखती हैं हर दुख सुख में साझीदार रहती हैं । हमारे घर की सदस्य जैसी हैं मुझे लगा ऐसे ही उन्हें  कोई सपना आ गया होगा । क्योंकि मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि जिनसे हम बहुत प्यार करते हैं अपने अवचेतन मन में उनकी चिंता करते रहते हैं । शायद मधु की इसी चिंता का परिणाम होगा
लेकिन मधु के फोन के लगभग आधे घंटें बाद मेरे बड़े चाचा जी की बेटा ममता का फोन आया । ममता कभी फोन नहीं करती साल में कभी एक आध बार  या कभी शादी ब्याह और गमी में मिलते हैं ।
ममता का भी पहला सवाल यही था -- दीदी आप ठीक हो ना ?
 
हां मैं बिल्कुल ठीक हूं तुम बताओ तु्म्हारे पति और  बच्चे कैसे हैं ?
 
उसने मेरे सवाल का आधा अधूरा उत्तर दिया और फिर उसकी सुईं भी वहीं अटक गयी - सच बताओ ना आप ठीक हो मुझे दो तीन दिन से आपके बारे में बुरे बुरे सपने आ रहे हैं ?
 
अब मेरे मन में भी थोड़ा सा खटका हुआ कि एक ही  दिन और कुछ ही समय के अंतराल पर दो फोन और वो भी मेरी कुशलता की चिंता को लेकर ।
  लेकिन काम की व्यस्तता और नवरात्र के कारण मैं उनकी बात को भूल सा गई ।
 
11 अप्रैल को कन्या पूजन के समय ना जाने अचानक क्या हुआ कि मेरी पीठ में असहनीय दर्द होने लगा उठना बैठना मुश्किल हो गया और शाम होते होते अस्पताल में दाखिल होने की नौबत आ गयी ।क्योंकि डिस्क स्लिप हो गयी थी ।  जब रात को अस्पताल में बिस्तर पर लेटी तो मधु और ममता के फोन की बात याद आयी । जिसे मैनें उनके मन का वहम समझ कर टाल दिया था तो क्या उन्हें मेरा बीमारी का संकेत पहले ही मिल गया था । उन्होने मुझे सचेत भी किया लेकिन मैं
सपने को सपना ही मानती रही और दो दिन बाद उन दोनों का सपना सच हो गया । और फिर पूरे बीस दिन में बिस्तर पर रही और काफी तकलीफ से गुज़री अब भी कईं घंटे लगातार बैठ नहीं सकती हूं ।
 
                      ऐसे अऩुभव आप सबके भी बहुत रहे होंगें । मुझे भी कईं बार अपने परिजनों को लेकर ऐसे सपने आए और कुछ दिन बाद वही घटनाएं  घटीं । मेरी बहन का बड़ा बेटा कार्तिकेय  तीन  महीने का रहा होगा कि मुझे सपना आया मैं एमसीडी के एक कूड़ा घर के सामने से गुज़र रही हूं ।  कूड़ा घर के बाहर कूड़े के ढ़ेर पर मेरी बहन का बेटा कार्तिकेय पड़ा है । मैने उसे देखा और उठा कर अपने सीने से लगा लिया और घर ले आयी । एक दो महीना गुज़र गया सब ठीक चलता रहा । जब वो पांच महीने का हुआ तो हम उसे लेकर पहली बार अपने घर पंचकूला गए । दिसंबर का महीना था । 
 
एक दो दिन के बाद उसे बुखार उल्टियां और दस्त लग गए । हम स्थानीय डॉक्टर को दिखाते रहे जिसे बहुत काबिल माना जाता था । 
 
लेकिन चार पांच दिन बीत गए हालत सुधरने के बजाए बिगड़ती चली गयी  ।
 
 मेरी बहन की ससुराल भी पास में ही है वो सब लोग भी आते जाते रहे सब बहुत परेशान थे । मेरी बहन के पति सेना में  अफसर हैं उस समय वो नागालैंड में किसी बड़े आपरेशन में लगे थे । फिर सबने फैसला किया कि बच्चे को चंड़ीमंदिर कैंट के कमांड अस्पताल में दाखिल करा देते हैं । अस्पताल में भी कार्तिकेय की हालत में कोई सुधार नहीं आया । और एक दिन शाम के समय उसने आंखों बंद कर ली और शरीर में कोई गति विधि नहीं रही । मैं और मेरी बहन ही उस समय कमरे में थे बाकी सब मेरी बीजी  ,मेरी बहन की सास, सुसर ,नाते रिश्तेदार , पड़ोसी सब बाहर वेटिंग  रूम मैं बैठे थे । हमारी आखिरी उम्मीद टूट गयी मैं और मेरी बहन रोते हुए बाहर आ गए -- हमने कहा वो अब नहीं रहा हमे छोड़ कर चला गया ।
इतने वर्षों के बाद हमारे घर में खुशियां आयी थीं सब बहुत खुश थे पड़ोसी और रिश्ते दार हम से ज्यादा खुश थे सब सन्न रह गए और सब रोने लगे । लेकिन मेरी मां नहीं रोयीं वो वहां से उठ कर चली गयीं ।
 थोड़ी देर बाद वो लौटीं चेहरे पर गम बिल्कुल नहीं और आत्म विश्वास से भरपूर और बोलीं --चलो कार्तिकेय को बड़ा डॉक्टर इमरजैसीं रूम मे लेकर जा रहा है ?
 
 सब रोते रोते चुप हो गए और मेरी बीजी का मुंह देखने लगे । सबने सोचा शायद बहुत   गहरा सदमा लगा है इसलिए बहकी बहकी बातें कर रही हैं । लेकिन उन्होने मेरी बहन का हाथ पकड़ कर खींचा और बोली चलो मेरे साथ । हम सब भागे भागे कार्तिकेय के रूम में गए तो देखा सचमुच डॉक्टर पलटा कार्तिकेय के बेड के पास खड़े थे उन्होनें आक्सीज़न बैगरह सब मंगवा लिया था और उसे बिना समय गंवाएं
 
इमरजैंसी रूम में ले गए । कमरे का दरवाज़ा बंद करने से पहले बोले -- मैं कुछ कह नहीं सकता अगर आज की रात ठीक से  गुज़र गयी तो आपके बच्चे
 को बचा लूंगा बरना कुछ नहीं कह सकता ।
 
 जिसे हम कमरे में ये सोच कर छोड़ आए थे कि इससे हमारा इतना ही नाता था , उसके जीवन की आस दिखने लगे तो कैसा लगता है । ये अनुभव हर वो मां और हर वो दिल कर सकता है  जिसके बच्चे और सगे संबंधी को नया जीवन मिल रहा हो ।
 
अब सबको लगा कि ये तो चमत्कार है । सब भगवान का लाख लाख शुक्र करने लगे कि चलो भगवान ने इतना किया और भी अच्छा करेंगें ।
उधर मेरे पापा जी घर पर बहुत बीमार थे । उन्हें तेज़ बुखार चल रहा था ।  सब ने कार्तिकेय के लिए ना जाने कितनी मन्नतें मांगी और मैं और मेरी बहन कईं दिन से कार्तिकेय के पास बैठ कर हनुमान बाहुक का पाठ कर रहे थे । उस रात भी  हमने सारी रात हनुमान बाहुक ना जाने कितना बार पढ़ा ।मेरी बहन के देवर मुकेश ने भी हम से लेकर हनुमान बाहुक पढ़ी । कहने लगा आप थोड़ा आराम कर लो । लेकिन आंखों में नींद कैसे आती ।
 
सुबह होने को इंतज़ार था ।सुबह पता चला कि कार्तिकेय को आर्मी अस्पताल के नियमों के अनुसार डेंजर लिस्ट पर डाल दिया गया है और पिता को अस्पताल की तरफ से सूचना दे दी गयी है । हमारे मन में चिंता और बढ़ गयी । अगला दिन भी  चिंता में ही बीता । शाम  होते होते डॉक्टर पलटा ने कहा अब आपका बच्चा खतरे बाहर है । और  इसी खबर को सुनने का सबको इंतज़ार था । सब खुश हो गए । उस दिन भगवान की कृपा  का पता चला । भगवान का जितना धन्यवाद देते उतना कम । हनुमान जी के हनुमान बाहुक में इतनी शक्ति है कि निष्प्राण में प्राण डाल दे । उनके प्रति श्रद्धा आज भी इतनी है कि संकट की हर घड़ी में हनुमान जी का ही सहारा रहता है ।
कार्तिकेय की बीमारी की खबर मिलते ही नागालैंड से पहला कूरियर ( सेना के अफसरों जवानों का लाने , ले जाने वाला विशेष विमान ) पकड़ कर उसके पापा भी आ गए हमें खुशी इस बात की थी पिता को आकर खुश खबरी ही सुनने को मिली । और हम कार्तिकेय को घर ले कर आगए । सब खुश थे । इतना खुश कि मैं शब्दों में बयान ही नहीं कर सरकती मैनें पहले भी एक बार लिका था कि हमारा मौहल्ला एक बड़े परिवार की तरह था जिसमें सब सबके लिए थे । किसी एक का गम सबका  गम .,और किसी एक की खुशी सबकी  खुशी . हमने ,कार्तिकेय के दादा    दादी ने जितनी मन्नते मांगी थी उससे ज्यादा हमारे पड़ोसियों ने मांगी थी । किसी ने उसे चप्पलों से तोला तो किसी ने कथा करायी  और किसी ने प्रसाद चढ़ाया । और मेरे पापा को तो सारी कहानी तब बतायीI गयी  जब कार्तिकेय बिल्कुल ठीक हो गया क्योंकि वो दिल के मरीज़ थे शुक्र है कि उन दिनों उन्हें बुखार था और वो अस्पताल नहीं जापाए थे और हमने उनसे सच छुपाए रखा ।सारा संकट टलने के बाद दिमाग को सोचने की फुरसत मिली तो दो महीने पहले आया वो सपना याद आया जिसमें मैं कार्तिकेय को कूड़े के ढ़ेर से उठा कर लायी थी। क्या संकट का संकेत सपने में मुझे पहले ही मिल गया था । फिर भी हम सचेत क्यों नहीं हुए । सपनों की दुनिया केवल सपने नहीं सच्चाई है । और हमें सपनों के संकेत समझने भी चाहिएं । ऐसे मेरे और भी कईं अनुभव हैं जिन्हे मैं आपसे 20 मई को शेयर करूंगीं । लेकिन मन में एक सवाल आया कि डॉक्टर पलटा कार्तिकेय के रूम में पहुंचे कैसे वो तो उनकी विज़िट का समय भी नहीं था । हमने अपनी बीजी से पूछा कि आपको कैसे पता चला कि डॉक्टर पलटा कार्तिकेय को इमरजैंसी रूम में लेकर जा रहे हैं।
 
 उन्होने बताया कि ,"जब तुम लोगों ने आकर कहा कि वो नहीं रहा तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि जो बच्चा हमारे घर इतनी मनन्तों मुरादों के बाद आया वो हमें छोड़ कर चला जाएगा । मेरा भगवान इतना कठोर दिल नहीं हो सकता । मुझसे मेरी ये खुशी नहीं छीन सकता । मैं कार्तिकेय के कमरे की तरफ जा रही थी तो कॉरिडोर में दूर से मुझे  डॉक्टर पलटा दिखे और मैं भाग कर उन्हें बुला लायी कि जल्दी चलो मेरे बच्चे में शायद कुछ प्राण बचे हों । और डॉक्टर पलटा मेरे साथ तुरंत आ गए "  । मेरी बीजी को आज भी पूरा विश्वास है कि डॉक्टर पलटा के रूप में भगवान स्वयं कार्तिकेय को जीवनदान देने आए थे ।
और हमें भी यही विश्वास है ।